पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१३६

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THEHINNANDPARIHARMA Hitment -Iraniaantertations भक्तिसुधास्वाद तिलक। ११७ मदनसेन प्रहर्ष में भरा बड़े चाव से दौड़ा, पंथ ही में दोनों (साला बहनोई) मिले । चन्द्रहास को महाराज के पास भेजा कि ऐसी ऐसी वार्ता है, इस घड़ी महाराज वैराग और अनुराग में पगे हैं, इस संकल्प में दृढ़ हैं, सीधे उनके पास पहुँचो, राज्य को प्राप्त हो, श्रीदेवी महारानीजी के अपमान का भय मत करो, मानसी प्रार्थना कर लो, मैं मठ में जा उनका पूरा सनमान पूजन करता हूँ॥" उधर जाते ही मदनसेन को घातकों ने मारडाला, और इधर चन्द्रहास से महाराज ने कहा कि “यह लीजिये, और राज्याभिषेक कर ही दिया। माप भगवद्भजन में लगा चौपाई। “उमा ! कहाँ मैं अनुभव अपना । सत हरिभजन-जगत सब सपना ॥" (७६) टीका । कवित्त । (७६७) __ काहू आनि कही “सुत तेरो मारो नीचनिने," सींचन शरीर हग नीर झरी लागी है । चल्यो ततकाल, देखि गिखो कै विहाल, सीस पाथर सों फोरि मलो ऐसो ही अभागी है ।। सुनि चन्द्रहास, चलि वेगि मठपास आये,ध्याये पग देवता के, काटे अंग, रागी है। कयो “तेरो देषी, याहि क्रोध करि मालों मैं ही," "उदोऊ दीजै दान” जिये बड़भागी है ।। ६७ ॥ (५६२) वार्तिक तिलक । कुबुद्धि से आकर किसी ने कहा कि “तेरे बेटे को घातकों ने वध करडाला?" यह सुन, डाढ़े मार मारकर, वह रोने पीटने लगा। दौड़ता हुना मन्दिर में जा वैसा ही देखा । वह अभागा भी पत्थर पर सीस पटक- कर कालबश हो गया। "कर्म प्रधान विश्वकरि राखा॥" श्रीचन्द्रहासजी सव वृत्तान्त सुनकर शीघ्र ही देवी भवन में भा स्तुति करने लगे, वरंच अपना शीश वलिदेने पर उद्यत हुए। श्रीदेवी महा- रानी जी प्रकट हो, इनका हाथ पकड़, यह बोली कि “धृष्टबुद्धि तेरा द्वेषी है इसलिये वत्स ! मैं ही ने उसको पुत्र समेत मार डाला है ॥" ___* (मनुस्मृति) "प्रवृत्त कर्म संसेव्य देवानामेति साम्यतामू । निवृत्तं सेवमानस्तु भूता- न्यत्येति पञ्च वे (१२-९०)"