पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१३९

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G A NPAdHARMA १२० श्रीभक्तमाल सटीक। करके उसको प्राप्त कर लीजियेगा। श्रीविदुरजी ने ऐसा ही किया, यह प्रसंग (श्रीमैत्रेयविदुरसंवाद) श्रीमद्भागवत के तीसरे स्कन्ध में विस्तारपूर्वक है। धन्य वे कि जिनने स्वयं भगवत ही से उपदेश पाया ॥ मेम के भवन वा प्रेम के बजा"श्रीचित्रकेतु"जी की कथा श्रीमद्- भागवत में ख्यात है कि कई शरीर पञ्चटके प्रतिकूल जन्म अर्थात् असुर ("वृत्रासुर) हाके, श्रीइन्द्रजी के त्रिशूल को फूल सरीला समझ, घात से प्रसन्न हो, अपनी भक्ति और ज्ञान के चमत्कार से सबको प्रफुल्लित कर "श्रीअरजी', श्रीभक्तराज ध्रुव"जी, तथा अतिशय प्रिय श्री "उद्धव जी, इत्यादिकं (समुदाय) की कथाएँ श्रीमद्भागवत के पत्र पत्र में प्रख्यात भौर प्रसिद्ध हैं ही॥६६॥ श्रीप्रकरजी। श्री अन्यकर्ता, श्रीमतरजी का वर्णन, भागे चलके करेंगे, अर्थात् 'नवधाभक्ति' के भक्तों के प्रसंग में ॥ (२६) श्रीचित्रकेतुजी। राजा चित्रकेतु के लाखों स्त्रियाँ थीं। "कृतदूती" नामा एक स्त्री के (श्रीनारदजी के एवं श्रीअंगिराजी के यज्ञ कराने से) एक पुत्र हुआ था, जिसको और सब रानियों ने मिलकर विष दे दिया, वह मर गया। - स्नेहवश राजा उसका दाहकर्म नहीं करता था, यद्यपि श्रीनारदजी ने उपदेश किया समझाया, तथापि उसका मोह नहीं गया, बोध नहीं हुया ! तव श्रीनारदजी के प्रभाव से वह पुत्र जीवित होके स्वयं कहने लगा कि “हे राजा ! सैकड़ों बार मैं तुम्हारा और तुम मेरे पुत्र हो चुके हो, मोह कहां तक और कैसा?" "अस्तु, पूर्वजन्म में मैं साधु था और श्रीशालग्रामजी की पूजा करता था। एक दिन इस माई ने, जो अब मेरी माता कृतदूती है. मुझे भाजन कराना चाहा तो अमनिया सीधा के साथ रसोई करने के लिये