पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१५७

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CHH400- नन् + - + - +- -+- - श्रीभक्तमाल सटीक ।- (ऐसा सुना गया है कि यही श्रीमुचुकुन्दजी श्रीजयदेव कवि- शिरोमणि हुए कि जिनका “गीतगोविन्द प्रसिद्ध है)। (४५) महाराज श्रीप्रियव्रतजी। भगवान् श्रीस्वयंभू मनुजी तथा महारानी श्रीसतरूपाजी के पुत्र, श्रीप्रियव्रतजी, पांच वर्ष के ही जब थे श्रीनारद भगवान के उपदेश से, विरक्त हो वन में हरिभजन करने लगे। चौपाई। "जेतो श्रम संसृति हित कीजै । कस नहिं तेतो हरि मन दीजै ॥" ___ महाराज श्रीमनुजी ने श्रीब्रह्माजी से कहा। तब दोनों प्रियवतजी को समझाने चले । इसलिये श्रीनारदजी ने श्रात्रा दे दी कि "वत्स' श्रीब्रह्माजी तथा श्रीमनु महाराज तेरे पास श्राते हैं, उनके वचन मान लेना।" श्रीब्रह्माजी के उपदेश से श्रीप्रियवनजी विवाह कर गृहस्थ हुए। उनके दस बेटे, तीन ऊद्ध वरेता (विरत) और सात गृहस्थ कि जो सातों द्वीप के राजा हुए। ये महाराज ऐसे प्रतापी भक्त और तेजस्वी थे कि इनका प्रकाश सूर्य के तेज के तुल्य था, जब सूर्यनारायण प्रस्ताचल को जाते तब भी इनके स्थ के प्रकाश और तेज से दिन बना ही रहता था। श्रीब्रह्माजी के उपदेश से इनने अपने तेज को ढांप लिया, तब सबको रात्रि काबोध होने लगा। . चौपाई। "लधुसुत नाम 'प्रियव्रत' ताही । वेद पुराण प्रशंसत जाही" "गुरुशासन गुनि पुनि घर पायो । कियो राज्य रघुपति पद ध्यायो॥" श्रीप्रियव्रतजी ग्यारह अर्बुद वर्ष राज्य कर भगवद्धजन करते हुए, - शरीर का परित्याग करके परमधाम को गए॥ (४६) राजा श्रीप्टथुजी। राजा श्रीपृथुजी का नाम पहिले चौवीस अवतारों (मूल ५ छप्पय १ पृष्ठ ४७) में आ चुका है।