पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१६१

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श्रीभक्तमाल सटीक। (५५) श्रीदेवहूतीजी। चौपाई। "स्वायंभूमनु अरु सतरूपा । जिन्हते भइ नरसृष्टि अनूपा ।। दम्पति धरम पाचरन नीका । मजहुँगाव श्रुति जिन्हके लीका ॥ देवहूति पुनि तासु कुमारी । जो मुनि कर्दम के प्रिय नारी ।। आदि देव प्रभु दीनदयाला । जठर धरेउ जेहि कपिल कृपाला॥" "देवहूति, तहँ करि हद नेमा । करि सियपिय पद पण प्रेमा॥ रहीजगत मह सो कछु काला । लग्यो न तेहि संसृत जंजाला ॥ जो स्वयं हरि (कपिलजी) की माता हुई, और जिन्ह देवी ने साक्षाद भगवत् से उपदेश पाया, उनकी स्तुति जहां तक की जा सके सो थोड़ी ही है। तीनों वाहनों की कथा उक्त प्रकार से है। (५६) श्रीमुनीतीजी। "ध्रुवहरि भक्त भएउ सुत जासू।" ये महारानी, महाराज उत्तानपाद की धर्मपत्नी, भक्तराज श्रीध्रुवजी की माता हैं, जिनने अपने प्रियपुत्र (श्रीध्रुवजी) को पांच वर्ष की अवस्था में हरिभजनपरायण कर दिया । "छोड़ि भवन बन गवन कीजिये । रघुपति पद रति रंग भीजिये। श्रीहरि संकट काटनहारे। दूज न रक्षक और तिहारे।।" "हरिभरोस करि कियो न मोहू । पंच वर्ष बालक तजि छोह ॥ चढ़ि विमान सुन्दर सुखलाई । गइ बैकुंठ निसान बजाई ॥ ध्रुवहु लख्यो निज नैन उठाई। गवन करत भागनिज माई॥" "पुत्रवती जुवती जग सोई । रघुपतिभक्त जासु सुत होई ॥" (५७) देवी श्रीमन्दालसाजी। श्रीसीतारामकृपा से श्रीमन्दालसाजी ने ऐसा पन किया कि “जोन जीव मम गर्भहिं आवै । सो पुनि जन्म मरण नहिं पावै ॥ भगवद्भक्त होके आवागमन से छूट जाय" आपने अपने पिता से यह विनय किया कि “यदि मेरा विवाह कीजिये तो ऐसे पुरुष से कीजिये कि जो “दूसरी