पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२०८

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144M..HMM... Mailn+14- 1 भक्तिसुधास्वाद तिलक। तक (रघुवंश के नाम से) प्रसिद्ध है और भाग्य की बड़ाई इससे अधिक और क्या कि श्रीसाकेतविहारी प्रापही के वंश में आके प्रकट हुए। (८६) श्रीरयजी। श्रीरयजी राजा पुरूरवा के पुत्र थे (उर्वशी अप्सरा जिनकी माता थी) (१) जय (२) विजय (३) स्य (१) आयु (५) श्रुतायु (६) सत्यायु ये छः सहोदर भ्राता थे। “स्य” इनमें बड़े पतापी थे॥ ... . (६०)श्रीगयजी। महाराज श्रीप्रियव्रतजी के कुल में राजा "नत" के पुत्र श्रीगुतिजी से हुये । एक बार यज्ञ में आपने ऐसा मनोरथ किया कि जिस प्रकार से देवता लोगों ने कृपा करके प्रत्यक्ष होके अपना २ भाग लिया, वैसे प्रभु भी अनुग्रह करके प्रकट हों, पर जब ऐसा न हुआ तो राजा ने अन्न जल त्याग दिया और प्रभु की प्रतीक्षा करते रहे। सच्चे व्रत और प्रेमवाले पर हमारे प्रभु ने कव कृपा नहीं की है ? करुणाकर भक्तवत्सल हरि मख में था ही तो पहुँचे ॥ यज्ञ पूर्ण करके राजा वदरिकाश्रम जाय योग से शरीर तज प्रभु के लोक में जा पहुँचे और उनकी धर्मपत्नी भी सती होकर पति से जा मिली। (६१) श्रीशतधन्वाजी। शतधन्वा की कथा (स्यमन्तक मणि के सम्बन्ध में ) श्रीमद्भा- गवत में विस्तार से वर्णित है । इनको श्रीकृष्ण भगवान ने मारा और मुक्ति दी। (६२) श्रीउतङ्कजी। श्रीउतंग ( उतङ्क)जी दण्डकवनवासी थे। उनके गुरु, स्वामी श्रीमतंगऋषिजी, जब श्रीरामधाम जाने लगे तो उनको आज्ञा दी