पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२०७

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श्रीभक्तमाल सटीक । tubese4++ ++ames थीं, और पिता श्रीबुधजी श्रीइलाजी की कथा पुराणों में विचित्र लिखी है जिसकी संक्षिप्त वार्ता यह है कि एक महीना यह स्त्री रहती थी और दूसरे महीने में पुरुष अर्थात् राजा सुद्युम्न, अस्तु ॥ . सोई इलाजी के पुत्र श्रीपुरूरवाजी उर्वशी अप्सरा के संग और प्रेम में बहुत दिन तक मृत्युलोक और गन्धर्वलोक में रहे । पुनः जब पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आये तो पिछली बातें स्मरण होने से इनको बड़ा विराग हुआ जिस विराग का फल श्रीहरिपद अनुराग पाकर भाप हरिकृपा से चैकुण्ठ को गये। (८७) श्रीगाधिजी। • राजा श्रीगाधिनी के ही पुत्र श्रीविश्वामित्रजी हैं जिनने साक्षात् भभु को अपनी वात्सल्य भक्ति से प्रसन्न किया कि जिनको प्रभु ने श्री वशिष्ठजी के समान आदर दिया, यह कथा श्रीमानसरामायणजी में सब प्रेमियों ने देखी ही है। गाधिजी की बेटी के पुत्र श्रीयमदग्निजी हैं। राजा गाधि बड़े भक्तिमान हुये। (८८) महाराज श्रीरघुजी। श्रीअयोध्याजी के महाराज श्रीरघुजी का प्रताप चौदहो भुवन में छाया हुआ था। एक समय उनकी महारानी को देख एक ब्राह्मण ने वैसी ही स्त्री पाने के लिये श्रीशिवजी को अपना मस्तक अर्पण कर देना चाहा। यह वार्ता सुन के महाराज ने अपनी बी राज समेत उस ब्राह्मण देवता को दे दी और उसी विष के मनोरथ हेतु इन्द्र ब्रह्मा तथा स्वयं श्रीवैकुण्ठनाथ से बहुत विनय प्रार्थना की कि जिससे प्रसन्न होके उस ब्राह्मण ने वैकुण्ठ में निवास पाया ॥ . श्राप ऐसे प्रतापी हुए कि पाप ही के नाम पर वह वंश श्राज