पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२१६

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4 4 + + + + + भक्तिसुधास्वाद तिलक । इनकी कथा बहुत विस्तार से है। जब धृतराष्ट्र ने अपनी स्त्री गान्धारी समेत श्रीविदुरजी के उपदश से सप्तधारा गंगा के तट जाके प्राण त्याग किया तव श्रीसंजयजी भी विरक्त हो मुक्त हो गये। (१०६) श्रीउत्तानपादजी। श्रीमहाराज उत्तानपादजी सब विधि प्रशंसनीय है. कि जिन्होंने भक्तराज श्री "ध्रुव" जी सा पुत्र पाया। श्रीध्रुवजी को राजदे, बन जा, हरि का भजन कर आपने परांगति पाई ॥ (११०)ऋषीश्वर श्रीयाज्ञवल्क्यजी। श्रीसूर्य भगवान ने कि जिनसे श्रीयाज्ञवल्क्य महर्षिजी ने विद्या प्रथमतः पढ़ी थी, अतिशय प्रसन्न होके यह आशिष दिया कि जो तुमसे विवाद करेगा उसका शीश स्वतः फट जावेगा।" आप महर्षियों में हैं। आपने श्रीमरदाजजी के प्रश्न के उत्तर में कृपा करके श्रीपार्वतीशिवसंवाद “मानसरामचरित" गाया है । आपकी स्तुति भी प्रसिद्ध है ही। श्राप अत्यन्त प्रेमी महाभागवत परम विवेकी महानुभाव हैं। आपकृत उपदेश विख्यात हैं। (१११, ११२, ११३) श्रीसमीकजी,श्रीपिप्पलादजी, श्रीपिप्पलाइनजी। श्रीसमीक्जी तथा महाभागवत श्रीपिप्पलादजी, और श्रीपिप्प- लाइनजी तीनों बड़े ज्ञानी ध्यानी प्रेमी थे। (१०९) छप्पय । (७३४) निमि अरु नौ योगेश्वरा पादत्राण * की हौं शरण ॥ कवि', हरि, करभाजनं भक्ति रत्नाकर भारी । अन्त- रिने, अरु चमसे, अनन्यता पधति उधारी ॥ प्रबुध, प्रेम की राशि, भूरिदा आबिरहोता। पिप्पल, मिल प्रसिद्ध भवाब्धि पार के पोता ॥ जयन्ती नन्दन "पादत्राण" खड़ाऊँ पनहीं जोड़ा, पगरखी । “भूरिदा" ==बहुत देनेवाला ।