पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२१७

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++ HAMAurat + + ++ a + + ++MarreH mrtment+ ++ श्रीभक्तमाल सटीक। जगत के त्रिविध ताप आमय हरण । निमि अरु नव योगेश्वरा पादत्राण की हौं शरण ॥१३॥ (२०१) वात्तिक तिलक ___ महाराज श्रीनिमिनी और नव (६) योगेश्वरों के पादत्राणों के मैं शरणागत हूँ और पादत्राण मेरे रक्षक हैं। उन नवो योगेश्वरों के नाम और गुण कहते हैं । श्रीकविजी, श्रीहरिजी, और श्रीकर- भाजनजी, जो नवधा प्रेमा परादि भक्तियों के महारत्नाकर समुद्र]हैं। श्रीअन्तरिक्षजी और श्रीचमसजी, जो भगवतधर्म अनन्य मार्ग के उद्धार करनेवाले हैं। श्रीपबुधजी जो भगवत्प्रेम की राशि ही हैं। श्रीविहोंताजी जो भक्ति ज्ञान वैराग्य के महादानी हैं। श्रीपिप्पला- यनजी और श्रीद्धमिलजी, जो संसारसागर से पार जाने के अर्थ प्रसिद्ध महानोका हैं। १ श्रीकविजी, । ७ श्रीविहोताजी, २ श्रीहरिनी, ८ श्रीपिप्पलायनजी, ३ श्रीकरभाजनजी, श्रीहमिलजी,. ४ श्रीअन्तरिक्षजी, १० श्रीजयन्तीजी देवी, ५. श्रीचमसजी, ११ श्रीनिमिजी महाराज। ६ श्रीप्रवुधजी, (११४) देवी श्रीजयन्ती। श्रीऋषभदेवजी की धर्मपत्नी परम भागवती देवी श्रीजयन्ती धन्य हैं, कि जिनके एकसौ पुत्रों में, परम आनन्ददायक ये नवो पुत्र संपूर्ण जगत् के जनों के तीनों ताप तथा काम क्रोधादिक मानसिक महारागा के इस्नेहारे, और श्रीभरतजी भगवत् के प्यारे, हुए । धन्य धन्य जय जय ॥ दम्पति के उन एकसौ पुत्रों में से ८१ महिसुर (बाह्मण) और शेप महीश (अवनीश) हुए ॥. (११०) छप्पय ! (७३३) .. AmARATARAHINEPAairmananews पदपराग करुणा करो, (ज) नेता "नवधा भगति ।