पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२३०

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२११ HANDA -INMEAunt4---14trint-+ 4.. .rainmentramarinema भक्तिसुधास्वाद तिलक । १ श्रीअगस्त्यजी १५ श्रीदालभ्यजी २ श्रीपुलस्त्यजी १६ श्रीअङ्गिराजी ३ श्रीपुलइजी १७ श्रीऋष्यशृङ्गजी ४ श्रीच्यवनजी १८ श्रीमांडव्यजी ५ श्रीवशिष्ठजी १६ श्रीविश्वामित्रजी ६ श्रीसौभरिजी २० श्रीदुर्वासाजी ७ श्रीकदमजी २१ श्रीजावालिजी ८ श्रीअत्रिजी २२ श्रीयमदग्निजी श्रीऋचीकजी १० श्रीगर्गजी | २३ श्रीमायादर्श (मार्कण्डेय )जी ११ श्रीगौतमजी २४ श्रीकश्यपजी १२ श्री (संजयजी) व्यासशिष्य २५ श्रीपर्वतजी १३ श्रीलोमशजी | २६ श्रीपराशरजी १४ श्रीभृगुजी | २७ (भाटसीसहस्र) (८८०००) (१२४) महर्षि श्रीअगस्त्यजी। श्रीसीतारामकृपापात्र शिरोमणि ऋषीश्वर श्री १०८ अगस्त्य भगवान् को कि जिनका दूसरा नाम "श्रीघटयोनि वा कुम्भजजी" भी है, अन्य महर्षियों के ही सरिस नहीं, वरंच इनको श्रीप्रभु का दूसरा व्यक्ति ही समझना चाहिये, किमधिकम् १ एवं, आपकी ची “श्रीलोपामुद्राजी", श्रीजनकनन्दिनीजी की अतिशय कृपापात्र सखी हैं। आप दोनों कीजय॥ श्रीअगस्त्यजी भगवान् की उत्पत्ति घड़े से हुई, वरुण देवता तथा मित्रजी दोनों के तेज एक कलश में रक्खे हुए थे, श्रीब्रह्माजी की इच्छा से उसी घट से आप निकले और ऐमा भी कहा है कि एक राजा ने पुत्रकाम यज्ञ कराया, उससे जो क्षौरान मिला, उसको उसने एक कलश में रख दिया (वह अपनी रानी को न खिला सका), उस घड़े से पाप प्रगट हुए। आपकी बनाई "श्रीअगस्त्यसंहिता” प्रसिद्ध ही है ।। साकेतपति शाधर दिव्य अखण्डैक नित्यकिशोर मूर्ति व्यापक