पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२३१

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- - २१२ श्रीभक्तमाल सटीक। परात्पर भगवत् सच्चिदानन्दधन शोभाधाम श्रीजानकीवल्लभ सम- चन्द्रजी की उपासनापूजा इत्यादि के बड़े भाग प्राचार्य श्रीअगस्त्य भगवान हैं । आपने सर्व जगत् पर कैसी कृपा की वर्षा की है, वर्णन नहीं हो सकता। पाँच छः कारणों से एक समय आप सम्पूर्ण विशाल समुद्र ही को पान कर गए थे, सो कथा विख्यात है ही। चौपाई। कह कुम्भज कहँ सिन्धु अपारा । सोखेउ विदित सकल संसारा॥ आज भी आपका नाम लेते ही महाअजीर्ण कोसों भागता है। श्रीपार्वतीजी और महादेवजी के विवाहउत्सव में जब गिरिराज हिमाद्रि के यहाँ देवतों दानवों आदिक के इकट्ठे होने पर उनके बोझ से धरती उत्तर की ओर नीची हो गई, तो सबकी प्रार्थना से परम समर्थ श्रीअगस्त्यजी दक्षिण को चले गए, तव भाप ही के प्रभाव से पृथ्वी दक्षिण की ओर नीची हो गई। अन्नदान न करके केवल मणि सुवर्ण वसन भूषणादि दान करने पर भी एक व्यक्ति बड़ी दुर्गति को प्राप्त हुआ था, सो उसका उद्धार महामुनि श्रीअगस्त्यजी ही महाराज ने कराया। और उसके दिय भूषणों से आपने श्रीप्रभु की पूजा की । श्रीसीतारामनाम का माहात्म्य श्रीधगस्त्यजी ने कहा भी है और श्रीशेषजी की सभा में देवतों तथ मुनियों को आपने नामप्रभाव दिखा भी दिया है ॥ देवतों की प्रार्थना पर श्रीधगस्त्य भगवान् ने ही मन्दराचल (विन्ध्यागिरि) को धाज्ञा दी जिसके अनुसार वह अचल अाज तप वैसा ही पड़ा का पड़ा ही है जैसा आपको साष्टाङ्ग दण्डवत् करने व समय गिरा था। श्रीहनुमानजी, श्रीशिवजी, और श्रीब्रह्माजी, जिस प्रकार । श्रीअगस्त्यजी महाराज की महिमा जानते हैं, वैसी और कोई क्य जानेगा ? भापके शिष्य श्रीसुतीक्ष्णादि की ही भक्तिप्रीति की व्याख्या तो अपार है फिर स्वयं प्रापकी तो वार्ता ही क्या ? ॐ श्रीसुतीपणजी की प्रीति श्रीरामचरितमानस में पाठक देख ही चुके हैं।