पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४३

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Puri4 M -10.4-1 .. + या श्रीभक्तमाल सटीक । है, परंतु पंडितों ने अगणित क्षेप बढ़ाकर बहुत बड़ा और कुछ अनादर का कारण बना दिया है। (१३९) श्रीदालभ्यजी। विप्रवर श्रीदालभ्यजी ने भगवान श्रीदत्तात्रेयजी के उपदेश से श्रीसीतारामजी का भजन किया। प्रभु ने दर्शन दिया। हरि आशिष से दालभ्यसहिता दैहिक, दैविक, भौतिक तीनों तापों को छुड़ानेवाली और सर्वकार्य सिद्ध करनेवाली है। (१४०) श्रीअङ्गिराजी। श्रीअङ्गिराजी ने श्रीनारदजी के उपदेश से वासुदेव भगवान की पूजा की। इनके बृहस्पतिजी पुत्र हुए, जिनको अपनी जगह पर समझ- के, भगवत् का ध्यान करते हुए आपने भगवद्धाम पाया। (१४१) श्रीऋषिशृङ्गजी। श्रीऋषिशृङ्गजी श्रीविभाण्डकमुनि के पुत्र हैं। इन्होंने अपने पिता से विद्या पढ़ी। ये नित्य विपिन ही में रहा करते थे, ग्रामपुरी नगर को स्वप्न में भी नहीं देखा था। बड़े ही वैराग्यवान थे। बंग देश से पश्चिम जो देश (जिसमें बिहार) है उसको ही “अङ्ग देश कहते हैं उसकी राजधानी अभी तक पटना नगर है । वहाँ के राजा "श्रीरामपाद" जी थे, उनमें चक्रवर्ती महाराजाधिराज अवधेश श्रीदशरथजी में परस्पर बड़ी मित्रता थी। श्रीरोमपादजी की कन्या श्रीशान्ताजी थीं, जो प्रभु श्रीरामचन्द्रजी की भगिनी (बहिन) प्रसिद्ध है। अस्तु । अङ्गदेश में दुःकाल पड़ा, ज्योतिषियों ने बताया कि यदि श्रीशृङ्गी- ऋषिजी आवें तो यह महाअवर्षण मिटे, जल बरसे ॥ निदान वेश्याओं ने बड़ी युक्ति की और वन से आपको पटने लाई। दुर्भिक्ष मिट गया और विभाण्डक मुनि के भय से श्रीरोमपाद-

  • श्लोक-श्रीमान् दनरथो राजा शान्ता नाम व्यजीजनत् ।

- अपत्यकृतिकां राज्ञे लोम पादाय या ददौ ।। - - -