पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४४

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भक्तिसुधास्वाद तिलक। २२५ 4-M AHARAPARMA- L J- due -Mummertimrt- जी ने अपनी कन्या का विवाह श्रीशृङ्गीऋषिजी से कर दिया। इस प्रकार इनके पिता को प्रसन्न किया। जब श्रीचक्रवर्ती महाराज को वंश न होने से खेद हुआ, तो- . चौपाई। श्रृंगी ऋषिहि वशिष्ठ बुलावा । पुत्र काम शुभ यज्ञ करावा । तब, दो० "विष धेनु सुर सन्त हित, लीन्ह मनुज अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु, मायागुन गो पार ॥" (१४२) श्रीमाण्डव्यजी। श्रीमाण्डव्य मुनि श्रीभगवत् के अनुराग में रंगे प्रेम में मग्न ध्यान समाधि में थे, उनकी कुटी के पास ही चोर सब चोरी के द्रव्य को बाँट रहे थे। राजा सुकेतु के भट वहाँ पहुँचे, एक चोर ने फुर्ती से एक मणिमाला मुनि के गले में छोड़ दी भटों ने मुनि समेत कई चोरों को पकड़, न्यायकर्ता तथा राजा की आज्ञा से सबके सबको शूली पर चढ़ा दिया। मुनि हरिस्मरण में मग्न थे, इसकी कुछ सुधि न हुई। __ सब चोर मर गए, पर मुनि की फाँसी तीन बेर टूट २ गई । राजा ने 'एक चोर का मुनि के वेष में होना तथा शूली पर चढ़के भी उसका नीते ही बचना" सुनके, उसको अपने सामने लाने की आज्ञा दी। चोर के भ्रम में, वा कर्मचारियों के अत्याचार में, अथवा पूर्वकर्म के फन्दे में ड़े हुए श्रीमाण्डव्यजी राजा के सामने लाये गए। __ मुनिजी को पहिचान, थर थर काँपता हुमा राजा सिंहासन से उठ शीघ्र आपके पदपंकज परशीश पर हाथ जोड़ सजल नयन हो अपराध की क्षमा माँगने लगा। महामुनि ने धीरे से कहा कि "राजा | तेरा कुछ दोष नहीं, यह यमराज की चूक है, मैं अभी जाके इसका उत्तर उससे ही पूछता हूँ॥" __ मुनि के क्रोध से डर यमराज ने हाथ जोड़ कहा कि "मुनिनाथ ! यह आपके पूर्वजन्म की बाल अवस्था के दोष का फल था, कारण जो आपने एक पतंगे (फरफुदै) के शरीर में नीचे से ऊपर तक एक काँटा छेद दिया था।"