पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२७

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'१२ १२.. IMG . . . ... . rane +more 4..44411-1Hd -m श्रीभक्तमाल सटीक । (४) भक्तिपंचरस वर्णन कवित्त (८३६) शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य,ौ शृङ्गारु चार, पांचौ रस सार विस्तार नीके गाये हैं । टीका को चमत्कार जानौगे विचार मन, इन के स्वरूप मैं अनूप ले दिखाये हैं । जिनके न 'अश्रुपात पुलकित गात कर्भू, तिनहू को “भाव"सिन्धु बोरि सों छकाये हैं । जौलौ रहैं दूर रहैं विमुखता पूर, हियो होय चूर चूर नेकु श्रवण लगाये हैं ॥ ४ ॥ (६२५) __(सत्रहवीं शताब्दी में अर्थात् संवत् साढ़ेसोलहसौ तथा सत्रहसौ के वीच में श्री भक्तमाल"जी का अवतारजानागया है । और संवत् १७६६ में श्री प्रियादासजी ने “भक्तिरसबोधिनी टीका लिखी है, अनुमान तथा अनुसंधान से ऐसा निश्चय किया गया है।) प्रोफेसर लाला भगवानदीन का"भक्ति भवानी" तथा वनशी हंसराजकृत “सनेहसागर” देखिये ॥ तिलक । भक्ति के जो पांच रस हैं, अर्थात् (१) शान्तरस (२) दास्यरस (३) सख्यरस (४) वात्सल्यरस तथा (५) दिव्य शृङ्गाररस ("रसराज" वा 'उज्ज्वल” रस), तिन पांचो रससार की भलीभांति विस्तार व्याख्या आप इस “भक्तिरसबोधिनी" में पाइयेगा ॥ (विचारवान महाशय !) श्रापस्वतःअपने मन में विचार करके टीका के चमत्कारको जान लीजियेगा कि इन पांचों रसों के स्वरूप कैसे अनूप दिखलाए गए हैं। जिन पाषाण- हृदय प्राणियों की आंखों से कभीअश्रुबिन्दु नहीं निकलता,और जिनका अंग कभी पुलकित नहीं होता, ऐसे २ कठोर हिय जनों को भी श्रीसीतारामकृपा से प्रेमभाव के समुद्र में कहां तक बोर के छकाया है, सो स्वयं आप समझ लीजियेगा । यदि तनक भी कानलगाके भक्तों के भाव तथा भगवत् भागवतयश को वैसे लोग भी सुनें, तो उनके भी प्रेम से चूर चूर चित्त, गद्गद कण्ठ तथा पुलकतनूरुह, हो जायँगे और नेत्रों से प्रेमाश्रु प्रवाह बह आवेंगे। पूरे विमुख तो वे केवल उसी काल तक रहेंगे कि जब तक "भक्तमाल" तथा "भक्तिरसबोधिनी” से न्यारे रहेंगे। भक्ति के पांच रसों "शृङ्गार, सख्य, वात्सल्य, दास्य और शान्त रस”, की व्याख्या का संक्षेप कुछ,अब आगे यन्त्रों में लिखा जाता है।