पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२७२

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MM44++++M444 भक्तिसुधास्वाद तिलक । २५३ तुम भावपूर्वक उनकी भक्ति को लेखा में लाओं" यों बातें करते हुए उस (श्वेत) द्वीप के मध्य मन्दिर में दोनों गए कि जहाँ सब भक्त लोग हरि के गुण और नाम ही प्रेम से गा रहे हैं ।।। देखते क्या हैं कि एक प्रार्ती दर्शन का नेमी दौड़ता हुआ आया, परन्तु प्रार्ती का समय बीत गया था। आर्ती का दर्शन न पाने के विरह से उसने प्राण को खींचके छोड़ ही दिया॥ ___उसके पीछे ही उसकी धर्मपत्नी भी आई और पूछने लगी कि "क्या आती हो गई ?” आपने कहा कि "हा हो गई वरन तेरे पति को भी दर्शन नहीं हुआ! देख, प्राणत्याग के धरती पर गिरा पड़ा है। आर्ती विरह ने इसके भी प्राण हर लिये, उसका भी मृतक शरीर पृथ्वी पर गिर पड़ा।" इन दोनों का नेम प्रेम देख प्रभु के और नारदजी के मन में यह अत्यन्त भाया ॥ इसी प्रकार से उनके पुत्रादि सब पाए और प्रार्ती के दर्शन विना प्राण त्याग त्याग गिर गिर पड़े। इस भाँति प्रभु ने इन सच्चे भक्तों का प्रेम नेम नारदजी को दिखाया, जिससे श्रीनारदजी को प्रबोध हुश्रा ॥ पुनः जब पार्ती होने लगी तो उस समय प्रभु ने सबको सजीव कर प्रार्तीदर्शन का आनन्द दिया। यह आख्यान "श्वेतदीप-माहात्म्य" में ऋषियों ने गाया है । इनके प्रेम भक्ति में सबको चित्त लगाना चाहिये। (१७४) ? अष्टकुल नाग। (१३२) छप्पय । (७११) उरग अष्टकुल द्वारपाल सावधान हरिधाम थिति॥ इलापत्रे मुख अनन्त अनन्तकीरति विसतारत । पा,संकु, पनप्रगट ध्यान उरते नहिं टारत ॥ अशुकम्बल, बासुकी १ "श्वेतद्वीप" को भूमडन पर एक बैकुण्ठ ही जानिये।