पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२८६

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Ma d andra -MAIvouri++ भक्तिसुधास्वाद तिलक । २६७ पीके वे दोनों अन्तर्धान हो गए, और मापने अपने को काञ्चीपुरी में पाया, श्रीजनरक्षक भगवान का धन्यवाद कर घरजा, माता के चरणों के दर्शन कर इनसे सारा वृत्तान्त सुनाया। . श्रीमातु कान्तिमतीजी ने उपदेश दिया कि "वत्स ! काञ्चीपुरी सत्यव्रत क्षेत्र में श्री “काञ्चीपूरण"नाम वैष्णव महात्मा (श्रीयामुना. वार्यजी के शिष्य ) श्रीलक्ष्मीनारायणजी के अनन्योपासक हैं । वेटा! तू जाके उनसे मिल सब प्रसंग सुना भोर महात्माजी जो आज्ञा दें सो करना॥" ___आपने वैसा ही किया। श्रीकाञ्चीपूरणजी ने बताया कि "वत्स ! वे मिल्लिनी तथा व्याध के वेष में स्वयं श्रीलक्ष्मीनारायणजी थे, जिन्होंने कृपा करके तुझे उस कूप के जल का माहात्म्य लखाया है । इसका भाशय यह है कि उस कूप के जल से तू प्रभु की (श्रीवरदराजभगवान की) सेवा कर, तेरे सकल मनोरथ पूरे होंगे, प्रभु तुझपर विशेष कृपा करेंगे।" यह सुन,आनन्द मग्न हो, धन्यवाद दे, आपने ऐसा ही किया। “श्रीमालवन्दारस्तोत्र के कत्तों,श्रीयामुनाचार्य महाराजजी जो श्रीरङ्ग भगवान की सेवा में उस समय थे, पापको (श्रीरामानुजस्वामी को) बड़े योग्य बालक समझकर अपने एक शिष्य को श्रापके आने के लिये भेजा । श्राज्ञानुमार थाप श्रीरङ्ग नगर को चले ॥ । परन्तु आठ दिन के भीतर ही श्रीरंग भगवान की आज्ञा पा श्री ६ पामुनाचार्य स्वामी शरीर त्याग कर परमधाम को चले गए। इस कारण यहाँ आने पर मापने श्रीस्वामीजी महाराज का दर्शन न पाया, केवल परीरमात्र को श्रीकावेरी तट पर बड़ी भीड़ भाड़ के मध्य देखकर प्रणाम किया। बड़े शोक मग्न हुए। . श्रीस्वामीजी की तीन उङ्गलियाँ मुड़ी देखकर आपने कहा कि "इसका तात्पर्य यदि अमुक तीन बाते हैं, तो अंगुलियाँ खुल जावें।" इस वचन के उच्चारण के साथ ही तीनों अंगुलियाँ एक एक करके खुल ही तो गई, और इसी आश्चर्य संघट के समय से सब लोग आपका अधिकतर आदर करने लगे। वे तीनों बातें ये थीं-