पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२८७

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श्रीभक्तमाल सटीक (१)श्रीसंप्रदाय प्रचार। । (२) ब्रह्मसूत्र पर भाष्य करना। . (३) ईश्वर जीव माया की व्याख्या करनी। आपने श्री ६ यामुनाचार्यजी के पाँच शिष्यों से उपदेश लिये, अर्थात- (१) श्रीमहापूर्णजी से, पंच संस्कारयुत श्रीनारायण मन्त्र (२) श्रीकाञ्चीवर्णजी से, श्रीवरदराज की सेवा विधि, (३)श्रीगोष्ठीपूर्णजी से. श्रीराम षडक्षर मन्त्रराज, (४) श्रीशैलपूर्णजी से, श्रीरामायणजी के अर्थ, (५) श्रीमालाधरज़ी से, सहस्रगीति के अर्थ ॥ इसके पश्चात् विरक्त हो आपने त्रिदंड धारण किया ॥ . . . चौपाई। "धरे त्रिदण्ड उदण्ड पानि में। रति अचिनजानकीनानि में"॥ : भाप श्रीरंगनगर में पहुँच, श्रीरंगभगवान की सेवा में रहने लगे। ' यह वार्ता तो पूर्व ही लिखी जा चुकी है कि रात को गोपुर पर चढ़ के मन्त्र उच्चस्वर से उच्चारण करके आपने जीवों को कृतार्थ कर दिया। श्रीजगन्नाथपुरी का चरित्र भी ऊपर ही कहा गया है। ऊपर के लिखे तीनों कार्यों में लगे और पूरा किया। दिग्विजय में अनेक प्रदेशों को कृतार्थ और लाखों मनुष्यों को श्रीभगवान के शरणागत कर दिया। आपके अतिप्रिय शिष्य "श्रीकूरेश- जी ने तथा “पण्डित यादव" की माताजी ने भी अपने पुत्र को (उक्त पण्डित को) बहुत कुछ उपदेश किया कि "यतीन्द्र महाराज का शिष्य हो जा, नहीं तो तेरा कल्याण नहीं।" तब वह श्रापको शरणागत हुआ, थापने.उसके पंचसंस्कार कर गोविन्द प्रपन्न उनका नाम रखा ॥.. बारहसहस्र सेवक साथ रहा करते थे, चौहत्तर वा पचहत्तर तो मुख्य शिष्य थे, जिनसे जगत् में शरणागति उपदेश का प्रचार हुआ। दिल्लीपति यवन के यहाँ से एक भगवनमूर्ति लाकर आपन