पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२९१

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श्रीभक्तमाल सटीका २७२..............m Mun.. .. ...4.-1 jinamrue m mm महिमा जगति। (श्री) आचारजजामात की कथा सुनत हरि होइ रति ॥ ३३॥ (१८) (५) श्रीलालाचार्यजी। वातिक तिलक कोई मालाधारी मृतकशरीर नदी में बहता हुआ जा रहा था, श्रीलालाचार्यजीने गुरुभाई' सरीखा उसकी दाहक्रिया इत्यादि करके, ब्राह्मणों तथा सब कुंटुम्चों को न्योता देके बुलाया। भुसुर लोगों ने अनजाने मृतक के भण्डारे को जानकर "नाकसिकोड़ भोजन नहीं स्वीकार किया, तब वैकुण्ठ से हरिजन लोग हरिकृपा से आके प्रसाद पाने लगे । उनको जेंवते तो सबों ने देखा परन्तु जाते उनको किसी ने नहीं देखा। इससे श्रीलालाचायंजी का माहात्म्य जगत में लाखों गुना अधिक प्रसिद्ध हो गया। प्राचार्य स्वामी श्रीरामानुजजी महाराज के जामाता की यह कथा जो सुनेगा तिसकी श्रीभगवत् तथा 'वेषधारी भागवतों में अवश्य प्रीति होगी।. . .... (१४३.) टीका । कवित्त । (७०.) .. , श्राचारज को जामात, बात ताकी सुनो नीके, पायो उपदेश “सन्त बन्धु करि मानिये । कीजै कोटि, गुनी प्रीति” ऐपै न बनति रीति तातें इति करो याते घटती न बानिये ॥ मालाधारी साधु तनु सरिता में बह्यो आयो, ल्यायो घर फेरिक विमान सब जानिये ।गावत बजावत ले नीर तीर दाह कियो, हियो दुख पायो सुख पायो, समाधानिये ॥१३०॥(५१६) ___ बात्तिक तिलक स्वामी श्री १०८ रामानुजजी के जामाता श्रीलालाचार्य की कथा भली भाँति सुनिये। श्रीगुरुमहाराज ने उपदेश किया कि “सन्तों को अपने भाई मानना और भाई से कोटि गुनी प्रीति १ "जगति" = लोक मे । २ "इति"-मर्यादा, सीमा ।