पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२९०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । २७१ पुष्कर . वामन । १.श्रुतिप्रज्ञा ऋषभ २. श्रुतिदेव ३. श्रुतिधामा पराजित ४. श्रुतिउदधि बात्तिक तिलक । चारों महन्त, चारों दिग्गजों की भाँति, भक्तिरूपी धरती को दवाए रहते हैं। श्रीश्रुतिप्रज्ञाजी तथा श्रीश्रुतिदेवजी, "ऋषभ” और “पुष्कर" नाम के दिशागजों के सरिस हैं, एवं श्रीश्रुतिधामाजीतथा श्रीश्रुतिउदधिजी, "पराजित” और “वामन" सरीखे हैं। ये चारों महानुभाव,स्वामी अनन्त श्रीरामानुज महाराजजी के गुरुभाई जगत् के बड़े मंगलकारी और जगत् में प्रसिद्ध हैं। शिवसंहिता में जैसा वर्णन है, उसी रीति से सनकादिक चारों भाइयों के समान एकतुल्य ज्ञानी हैं। श्रीलक्ष्मीजी के सम्प्रदाय में अति उदार बुद्धिवाले हैं । सन्त सभा के (पक्षपातरहित) साक्षी सजन, इन चारों भक्तिरक्षकों को श्रीरामानुराग में मत्त गजराज ही कहा करते थे, अतएव अपने भजन सदाचारों से भक्तिरूपी भूमि को ऐसा दवाए रखते हैं कि किंचित् डगने डोलने नहीं पाती। (१४२) छप्पय (७०१) (श्री) आचारजजामात की कथा सुनतहरि होइरति॥ कोउमालाधारी मृतकबह्यो सरिता में आयो। दाह कृत्य ज्यों बन्धु न्योति सब कुटुंब बुलायो । नाकसकोचहिं विप्र तबहिं हरिपुर जन आए । जेंवत देखे सबनि, जात काह नहिं पाए ॥ "लालाचारज" लक्षां प्रचुर भई १ "जामात" सुता का पति, दामाद, जमाई। २"हरिपुर"-वैकुण्ठ । ३ "लक्षवा" लक्षगुण लाख गुणा।