पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३०७

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२८८ श्रीभक्तमाल सटीक कवित्त। "प्रगट प्रयाग भाग कश्यप ज्यों भूसुर के सात माघकृस्ण मारतण्ड से अरामी हैं। काशी-से प्रकाश में प्रकाश सुखरास किए, पारही सु शिष्य मानों कलों तेजधामी हैं । कलि-की कुचालनिशा खण्डे हैं पखंडतम, दुरिगे अभक्त चोर पंथ-घोर बामी हैं । फेल्यो वेष धाम, धाम धाम सन्त कंज खिले बदै “रसराम" रवि रामानन्द स्वामी है" ॥ १॥ __ स्वामी श्री १०८ रामानन्दजी दयालु श्रीप्रयागराज में कश्यपजी के समान भगवद्धर्मयुक्त वड़भागी कान्यकुब्ज ब्राह्मण “पुण्यसदन" के गृह में, विक्रमीय संवत् १३५६ के माघ कृष्ण सप्तमी तिथि में, सूर्य के समान सबों के सुखदाता, सात दण्ड दिन चढ़े चित्रा नक्षत्र सिद्ध योग कुम्भ लग्न में गुरुवार को, 'श्रीसुशीला देवी जी से प्रगट हुए। दो० चारि सहस शतवारि भी, गत कलिकाल मलीन । तेहि अवसर नरलोक हीरे, निवसन हित चित दीन ॥ कलियुग के ४४०० वर्ष गत हो चुकने के अनन्तर-- | विक्रमी । शाके । ईस्वी कलि | + १३५६ । १२२२ १३०० | १४.. । (श्लोक)-"रामानन्दमहामुनिस्समभवदागेषुरामावनी-( १३५६) युक्ते विक्रमवत्सरे घटतनी माघासिते त्वाष्ट्रभे ॥ सप्तम्यां गुरुवासरे युजि तथा सिद्धौ प्रयागाश्रमा च्छीमद्भसुरराजपुण्यसदनादामावतारः कृती" ॥ "विमल सलिल, निर्मलनभ प्रासा। शुचि सन्तन मन मोद हुलासा !! प्रगटे रवि इव करुणाकन्द।। सन्तसरोजन प्रद-आनन्दा ॥" +और श्रीतपस्वीरामजी सीतारामीय ने भी सवत् १३५६ ही लिखे है। 1 Dr w.W. Hunter, M A,और A.C Mukery M. A. B. L.ने भी यही लिखा है।