पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३३

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विभाव व्यभिचारी -- अनुभाव सात्त्विकभाव स्थायी भाव विपयालम्बन आश्रयालम्बन उद्दीपन भाव | नासाग्रपर स्मृति, प्रशान्त, "शान्त" रस ब्रह्मा, शिव, सनकादि, श्रीनारद, श्रीवशिष्ठ, | श्री अगस्ति, उपनिपद् विचार, तीन वैराग्य मग्न, २ रोमाच ३ स्वेद ४ विवर्ण निर्वेद, आवेग, वृति, | अवधूत बेप्टा, परमवैराग, निर्वेर, निर्ममता इत्यादि इष्ट श्रीराम चन्द्र हरि परब्रह्म सच्चिदानन्द जगदेककर्ता भगवान् विश्वम्भर व्यापकसर्वज शानवर श्रीसीतापति परमात्मा, अद्वेत, परमानन्दात्मा सचराचर- रूप १६ अथु ७स्वरमग - प्रलय शान्त रस वाले भक्त (SS RS. B P R K) निर्द्वन्द्व, समदरशी, विरक्तपर, तन्मय एकान निस्पृह उत्सुकता, विपाद, वितर्क, इत्यादि श्रीभक्तमाल सटीक। AR THAm www - मा - mm -.