पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/३३४

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mpM.HINH- -IN- Hinutet- भक्तिसुधास्वाद तिलक। आपका अष्टयाम, आपकी "ध्यानमंजरी" श्रापके कुण्डलिया, पदावली इत्यादि प्रख्यात ही हैं। आपके विशेष प्रभाव आदि में मानसी का वर्णन हो चुका है, और यहाँ बाटिकाप्रीति प्रसंग कुछ लिखा गया। श्रीअग्रस्वामीजी के प्रेम की प्रशंसा कहाँ तक हो सकती है जिनके कृपापात्र, श्रीभक्तमालजी के कर्ता श्री १०८ नामास्वामीजी हुए। __ आपको श्रीजानकीजी महारानी ने कृपा करके दर्शन दिया । आप अपनी इच्छा से तन तजके श्रीसाकेत को पधारे ॥ () स्वामी श्री • नाभाजी ( स्वामी श्रीअनदेवजी पियहारी श्रीकृष्णदासजी () श्रीअनन्तानन्दजी () भगवान रामानन्दजी श्रीगोस्वामी श्री १०८ नाभाजी महाराज का नाम श्रीनारायणदासजी भी (पृष्ठ ४६ में ) लिखा जा चुका है । आपकी चरचा पूर्व हो चुकी है और यह भी कि भक्त- पाल विक्रमीय संवत् की १७ वीं शताब्दी में, अर्थात् १६४० और १६८० के बीच में लिखी गई है।