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HIDIMAnne- ३९८ श्रीभक्तमाल सटीक ।

विदान ब्राह्मणों को बुलाकर महाराज ने इस बात की अनुमति भी

ले ली कि "जिस अंग से भगवत् का अपराध हो जावे उसको त्याग करना भला है।" (२४४) टीका । कवित्त । (५९९) "काटे हाथ कौन मेरो ? रह्यो गहिमोन यांत, प्रछतै सचिव कथा विथा, सो विचारिये । “आये एक प्रेत, मो दिखाई नित देत निशि, डारिक झरोखा कर, शोरे करे भारिय" ॥ “सोऊँ दिग आइ, रहाँ भापुकी छिपाई, जब डोरै पानि पानि, तब ही सुकाटि डारिय। कही नृप "मलें," चौकी देत मैं घुमायो, भूप डाखो उठि श्राइ छेद, न्यारो कियो, वैरियै ।। १६१ ॥४३५) त्तिक तिलक। राजा इस सोचविचार में था कि “मेरा हाथ कौन और क्योंकर काटै ?" और इसी से खिन्नचित्त चुप बैठा था। मन्त्री ने पूछा कि महाराज । “वानी क्या है ? आप व्यथा को प्रगट कीजिये, तो उसका प्रयत्न किया जावे" राजा ने उत्तर दिया कि "नित्य ही एक प्रेत बाता है, रात्रि के समय मुझे देख पड़ता है, झरोखे में हाथ डालकर वह बड़ी भारी चिल्लाहट मचाया करता है।" __मन्त्री ने कहा कि "मैं आपके पर्यंक के पास आके सोऊँ और अपने तई छिपाए रहूँ। वह प्रेत ज्यों ही आके झरोखे में हाथ डाले त्योंही काट डालूँ।" राजा बोला “बहुत अच्छा ॥" __ मन्त्री चौकी देरहा था, राजा अपने पर्यंक से उठाया और छेद में हाथ डालकर उसने हाथ को घुमाया। वहीं, मन्त्री ने हाथ को धड़ से काटके अलग कर दिया। मानो राना ने अपने कर को श्रीप्रभुपर यों न्यौछावर किया ॥ (२४५) टीका । कवित्त । (५९८) देखिकै लजानी, “कहा कियों में अजानौं” । नृप कही "प्रेत "या"-इससे, इसहेतु । २"पूछत कथा, बिथा"-वार्ता तथा व्यथा का विवरण पूछा । ३ 'शोर"=1pm कोलाहल, ..चिल्लाहट । ४ "डार पानि आनि"-आके हाथ डाले । ५. "धारिय"न्यौछावर कर दिया।