पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४२२

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Arabs .HAM+Har d warent + hdupdate भक्तिसुधास्वाद तिलक। की भक्ता दोनों वाइयों की अपूर्व कथा सुनिये । ये दोनों एक साथ ही रहती खेलती थीं। एक समय राजा के गुरु महाराज पाए, उनको श्रीशालग्रामजी की सेवा करते देख, ये दोनों पास जा बैठी, वरंच हरिकृपा से पूर्वजन्म के भक्ति-संस्कार-वश सेवा पूजा को ललचाई, और गुरुजी से इन दोनों ने माँगा कि “महाराज ! श्रीठाकुरजी की मूर्ति हमको भी दीजिये, हम शोमासागर सुकुमार प्रभु की पूजा सेवा करेंगी।" उन्होंने बालिका जान दोनों को एक एक टुकड़ा पत्थर देके कह दिया कि इन ठाकुरजी का नाम "सिलपिल्ले" है, मति और मन लगा- के प्रीति से इनकी पूजा किया करो तथा यह प्रतीति रक्खो कि "ये ही हमको भवसागर से पार उतार देंगे।" वे बड़भागिनी सेवा पूजा करने लगी, करते करते उनकी प्रीति प्रतीति भगवदमूर्ति में अत्यन्त बढ़ गई, उन सिलपिल्लों में ही श्रीसुकुमार शोभा- सारजी के रूप अनूप उन दोनों को झलक गए। युगलसरकार की कृपा की यह बड़ी मनोखी रीति है कि- "करते करते नकल के सही असल है जाय ॥” “साँचा जग में विरलाकोय । अठसुठ खेले साँचा होय ॥" भगवत् के सच्चे प्रेमियों के व्यवहार तथा आचरण का सच्चे मन से नेम से अनुकरण करते करते भगवत्कृपा से लोग वास्तव में हरिभक्त अवश्य हो ही जाते हैं, यह बात विशेष करके जान के मनस्थ रखने की है ।। (२४९) टीका । कवित्त । (५९४) पाछिले कवित्त माँझ दुहुँन की एक रीति, अब सुनौ न्यारी न्यारी नीके मन दीजिये। “जिमीदारसुता" ताके भएं उभै भाई, र अापुस मैं वैर, गाँचे माखो, सब छीजिये। तामैं गई सेवा, इन बड़ोई कलेस कियो, जियो नाहिं जात, खान पान कैसे कीजिये । रहे समुझाय, याहि कछु १ "भए उभे भाई"--दोभाई थे, दोनों भाई अलग हुए । २ "गाँव मारयो"-गांव में (इसके घर पर) डाकाडारा वा छापा मारा,लूट लिया। ३ "छीजिय" =क्षय हुआ, जाता रहा । नाश हुआ, ४ 'सका पूजने की मूर्ति ।।