पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४२१

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४०२ H a - A ns . - - - - -- - - - - - - -- -- -- - श्रीभक्तमाल सटीक । सकता, और इस रहस्य को विना जाने ही अन्यथा कुछ कहना श्रनीति है।" "जाननिहारे जानहीं, बड़ो नेमते प्रेम ॥" । पण्डों ने उस सन्त से वही बात समझाकर कही कि “महात्माजी! पाप जाके श्रीकर्माबाईजी से फिर कह श्राइये कि 'मैंने जो झंझट बताए थे उन्हें आप जाने दीजिये, और जैसे प्रथम आप प्रभात ही शीघ्रता से भोग अर्पण किया करती थीं उसी सरल भाव से निःशंक आप अपनी सी कीजिये, श्रीभक्तवत्सल भावग्राहक सर्कार इसी में प्रसन्न हैं।" वे साधुजी डर गए और वेगि जाके वैसा ही ठीकठाक कर आए। प्रभु आज्ञा से अब तक सबसे पहिले ही श्रीकर्माजी की खिचड़ी भोग लगाई जाती है। भावभक्ति, सरलता और सच्ची प्रीति की जय !! चौपाई। "नहिं विद्या, कुल, जाति अचारा । गहि केवल प्रेम पियारा ॥" (४५)(४६)सिलपिल्ले भक्ता उभय बाई। (२४८) टीका । कवित्त । (५९५) "सिलपिल्ले भक्ता उभे बाई,” सोई कथा सुनौ, एक नृपसुता' एक 'सुता जिमींदार की । पाए गुरु घर, देखि सेवा, ढिंग बैठी जाइ, कही ललचाइ “पूजा कीजै सुकुौर की" | दियो सिलाटूक लेके, नाम कहि दियो वही, कीजिये लगाइ मन मति भवपार की। करत करत अनुराग बढ़ि- गयो भारी,बड़ी यै विचित्र रीति यही सोभासोर की ॥ १६८ ॥ (४३१) ___वात्तिक तिलक । एक राजकन्या और एक भूम्यधिकारीसुता सिलपिल्ले भगवान् १ "पिल्ले"=पिल्ला: लड़का, बेटा ( "भखर" सरगुजा ओर की बोली ) "सिलपिल्ले" -"सिलाटूक" -पत्थर के टुकडे 1 २ "उभय" =२ दो। ३ "जमीदार"= जिमीदार भूम्यधिकारी। ४ "सुकुमार" -भगवत् । ५ "शोभासार" = भगवत् ।