4-+-+-+ H i t + 4 +- + + + श्रीभक्तमाल सटीक दारुमयी तरवार सारमय रची "भुवने” की। "देवा" हित शित केश प्रतिज्ञा राखो जनकी ॥ "कमधुज" के कपि चारु चिता पर काष्ठ जुल्याये।"जैमल के जुधि माहि अश्व चदि आपुन धाये ॥ घृत सहित भैंस चौरांनी, "श्रीधर' सँग सायक-धरन । चारौ युग चतुर्भुज सदा, भक्त-गिरा सांची करन ॥५२॥(१६२) वात्तिक तिलक । श्रीचतुर्भुज भगवान चारों युगों में अपने भक्तों की वाणी सदा ही सच्ची करते आते हैं। (१) "भक्त श्रीत्रिभुवनसिंहजी चौहान" का खङ्ग था तो काठ ही का, परन्तु भक्तजी के मुख से. सार" उच्चारण होते ही प्रभुने उसको उत्तम सार लोहे का बना दिया ॥ (२) एवं "श्रीदेवापण्डाजी" के कहने से उसके हित करने के अर्थ भगवान श्रीचतुर्भुजजी ने अपने विग्रह में श्वेत (धवल) केश धारण कर उनकी प्रतिज्ञा रखली ।। (३) ऐसा ही, "श्रीकमधुज (कामध्वजजी)"ने कहा कि "मैं जिनका दास हूँ वही मेरे शरीर का दाह करेगा," इससे कपीश हनुमानजी ने उनकी चिता के हेतु उत्तम काठ लाके इनका मृतक शरीर जलाया ॥ (४) तथा, "राजा जयमलजी" के हेतु युद्ध में प्रभु स्वयं श्राप घोड़े पर चढ़ के दौड़े और लड़कर विजय किया । (५) इसी भाँति, "ग्वालभक्त" जिन्होंने झूठ ही कह दिया कि “मैंने भैंसें ब्राह्मण को दे दी हैं, वह घृत सहित दे जावेगा” सो भी प्रभु ने सत्य किया कि चौगुनी भैंसें घर में पहुंचीं ॥ (६) इसी प्रकार "श्रीधरजी" जिन्होंने चोरों से कहा कि "मेरे साथ रक्षक है” सो इनकी गिरा सत्य करने के लिये अपने चारों भुजाओं में धनुष बाण लिये हुए श्रीरघुवीर लक्ष्मणजी ने रक्षा की ।