पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४४८

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...............४२९ 4...+naaman art+ Monkannamrria-. -..-marat भक्तिसुधास्वाद तिलक । सेवा ले बताई है। कह्यो “सुत कहाँ?" "अजु ! पायो,” कही "कसी भाँति ? "भाँति का बखानी, जग मीच लपटाई है" | "प्रभू ने परीक्षा लई, सोई हमैं आज्ञा दई, चलिये, दिखावों जहाँ देह कौं जराई हैं"। गए वाही ठौर, सिरमौर हरि ध्यान कियो, जियो, चल्यो आयो, दास कीरति बढ़ाई है ॥ २२३ ।। (१०६) वात्तिक तिलक। । विवाह हो जाने के अनन्तर, सदावतीजी के श्रीगुरुदेवजी जोकि बड़े ही भगवत्भक्त सिद्ध उपमारहित सन्तसुखदायी थे, और जिन्होंने प्रभु की प्रसन्नता का साधन साधु सेवा को बताया था सो श्राप के घर में आए, यह सब विचित्र चरित्र कुछ तो श्रीप्रभु के इङ्गित से जानते ही थे, तथा यहाँ और किसी ने कह दिया सो सुनकर भक्तजी से पूछा कि “तुम्हारा पुत्र कहाँ है ?” भक्तजी ने उत्तर दिया कि "अजी महाराज! उसकी तो मृत्यु हो गई” श्रीगुरुजी ने प्रश्न किया कि "किस भाँति से ?” उत्तर दिया कि “प्रभो ! भाँति क्या बखानूं. इस जगत् में तो मीच लपटी ही है" तब श्रीगुरुमहाराजजी बोले कि “यह तुम्हारी भक्ति की प्रभु ने परीक्षा लेकर तुम्हारा सुयश बढ़ा के, मुझे प्राज्ञा दी है" कि "तुम वहाँ जाव ।" यह कह आपने प्राज्ञा की कि “चलो, जहाँ तुमने उसको दाह किया है वहाँ चलें ॥" . _ वहाँ जाके सिद्धशिरोमणि श्रीगुरुजी ने ध्यान करके ज्यों ही श्रीप्रभु से प्रार्थना की, त्यों ही श्रीप्रभु का प्रगट किया हुआ वह पुत्र सजीव श्रा पहुँचा, और उसने श्रीगुरुचरणों को प्रणाम किया । जयजयकार हुधा॥ इस प्रकार श्रीभगवान ने अपने दास की उज्ज्वल कीर्ति बढ़ाई। जिस को अद्यापि सज्जन लोग सुन और गाकर अपूर्व प्रेम में मग्न हो जाते हैं। (२७५) छप्पय । (५६८) चारौ युग चतुर्भुज सदा, भक्त-गिरा सांची करन ॥ १"पायो"-मीच को प्राप्त हो गया । "भांति का बखानी" पाठान्तर "भाँति को वखाने ?"|