पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४६१

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4.4-04-16....Hanuman MAHAR MA .. dnai...... 14. 9 ++ ४४२ श्रीभक्तमाल सटीक । (५८) श्रीश्रीधर स्वामीजी। (२८६) टीका । कवित्त । (५५७) भागवत-टीका करी "श्रीधर” सुजानि लेड्डु, गेह मैं रहत, करें जगत व्यवहार हैं। चले जात मग, ठग लगे, कहै "कौन संग?" “संगरघुनाथ मेरो जीवन अधार हैं" । जानी इन कोउ नाहि, मारिखो उपाय करे, धरे चाप बान, श्रावे वही सुकुमार हैं । भाये, घर ल्याये, प "स्याम सो सरूप कहाँ?"जानी वेतो पार किये आपु, डालो भार हैं ॥ २३४ ॥ (३६५) वातिक तिलक। ऊपर कवित्त १६४ में, कह पाए हैं कि श्रीश्रीधर स्वामीजी ने श्री मद्भागवतं पर कैसी उत्तमोत्तम परमधर्ममय टीका की है। सो जान लीजिये कि पहिले श्राप गृहस्थाश्रम में रहके संसार के शास्त्रोक्त व्यवहार किया करते थे और धनी भी थे। उन्हीं दिनों में एक समय, आप आगरे से घर चले पा रहे थे, मार्ग में कई ठग आपके साथ लग गए। उन ठगों ने आपसे पूछा कि तुम्हारे संग कोई है ? और है तो कौन है ?" __ आपने उत्तर दिया कि “मेरे संग मेरे प्राणाधार शार्ङ्गधर श्रीरघु- वीर हैं।" इससे ठगों ने यह जान लिया कि "इनके साथ कोई भी नहीं है," वे आपके मार डालने का उपाय करने लगे। वहीं धनुष वाण धरे हुए वे ही सुकुमार श्रीभक्तरक्षक प्रभु जिनको आपने अपने साथ बझा और बताया था ठगों के देखने में आए और साथ साथ बने रहे यहाँ तक कि आप कुशल अानन्दपूर्वक घर पहुंच गए। आकर ठग श्रीश्रीधर स्वामी से पूछने लगे कि “जो परम सुकु. मार श्यामसुन्दर वीर धनुषवाणधारी रक्षक तुम्हारे संग संग आया है. वह अब कहाँ है ? हम देखा चाहते हैं।" तब यह जानकर कि १ "ठग लगे"--ठग पीछे पीछे साथ हो लिये । २ "" प्रभु । ३ "डारयो भार है"== गृहस्थी के भार को त्याग डाला।