पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४७

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३२ श्रीभक्तमाल सटीक 1 (१) “सोह न वसन विना वर नारी।" (२)"नवनि वसन,(पन सोंधो ले लगाइये)" (३)"यद्यपि गृहसेवक सेवकिनी । विपुल सकल सेवा विधि गुनी ॥ निज कर श्री परिचर्या करई। रामचन्द्र प्रायसु अनुसरई । इत्यादि । (४) पद सेवा श्रीलक्ष्मी, (आसन वर श्रीशेष)" इत्यादि, इत्यादि। (६) सत्संग प्रभाव वर्णन । कवित्त । (८३७) भक्तितह पौधा ताहि विघ्न डर छेरी हू को, बारि दे विचार, वारि सींच्यो सतसंग सों । लाग्योई बदन, गोंदा चहुँ दिशि कढ़न, सो चढ़न अकाश, यश फैल्यो बहुरंग सों॥ संत उर बालबाल शोभित विशालकाया, जिये जीव जाल, ताप गये यो प्रसंग सों । देखो बढ़- वारि, जाहि अजाहू की शंका हुती, ताहि पेड़ बाँधे मूल हाथी जीते जंग सों॥६॥(६२३) तिलक ! श्रीहरिभक्तिरूप तरुवर की प्रादि अवस्था एक नवीन वृक्ष की सी समझिये कि जिसको एक बकरी के बच्चे से भी विघ्न का भय रहा करता है, और संत वा भक्त के हृदय को थाला सरिस जानिये । इस पौधे की रक्षा चारों ओर विचाररूप घेरे से जब की गई तथा सत्संग के जल से यह सींचा गया तब यह बढ़ने लगा, चारों ओर गोंदे (शाखा प्रशाखा) निकले फैले और वृक्ष श्राकाश की ओर चढ़ने बढ़ने लगा, भगवद्भक्ति का सुयश अनेक प्रकार से लोक में विख्यात हो गया । इस तरुवर की विस्तृत छाया कैसी सुशोभित हुई कि जिसके तले पहुँचने ही से महाताप गये; और नारिनरवृन्द वर जीवमात्र

  • मिट्टी, ईंटो वा काँटो के धेरै को "बारी" वा "वार" जानिये ।