पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४६

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1- -04-0HI ++ HI- JAImeaninHINMARATHI भक्तिसुधास्वाद तिलक .........३१ भक्तिसुधास्वाद तिलक । प्रिय पाठक ! श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी कृत "श्रीगीतावली," श्रीदेव स्वामी (काष्ठजिह्वाजी) प्रणीत "शृंगारप्रदीप,” श्रीजयदेव- स्वामीकृत "गीतगोविन्द", प्रधानकृत "रामहोली, रामकलेवा" श्रीयुगलप्रिया श्रीरूप सखीजी की होली, श्रीनाभाजी, श्रीरसिकाली, श्रीतपस्वी रामजी, तथा श्रीरामचरणदासजी दीनरूपकलाकृत अष्टयाम मानसपूजा". "श्रीअगस्त्यसंहिता" इत्यादि और श्रीमद्भागवत (दशम), एवं श्रीकृपानिवासजी की पोथियाँ भी देखिये॥ (५) कवित्त । (८३८) पंचरस सोई पंच रंग फूल थाके नीके, पीके पहिराइवे को रचिके बनाई है। बैजयंती दाम, भाववती अलि "नामा"नाम लाई अभिराम श्याम मति ललचाई है ॥धारी उर प्यारी, किहूं करत न न्यारी, अहो । देखौ गति न्यारी ढरि पायन को आई है। भक्ति छबि भार, ताते नमित "शृंगार” होत, होते वश लखै जोई याते जानि पाई है।॥ ५॥ (६२४) भक्तिसुधास्वाद तिलक। "शान्त, दास्य, सख्य, वात्सल्य और शृङ्गार", ये जो भक्ति के पाँचों रस, सोही पंचरंगे फूलों के विचित्र थाके हैं; इन्हीं की बैजयन्ती माला सप्रेम नीके रच रच के, प्रियतम को पहिराने के हेतु, श्रीनाभा नाम की अतिभाववती अलीजी सुन्दर मनोहर बनाय लाई हैं, जिसको देख के, भक्तवत्सल भावनाहक प्रेमप्रिय श्रीशार्ङ्गधर श्यामसुन्दरजी की भी मति ललच गई है, मापने इस माला को उर में धारण किया, यह विलक्षण अनूप रीति गति देखने ही योग्य है कि आप इस परममिय माला को किसी क्षण गले से अलग नहीं करते हैं । भक्ति रस पुष्प थाकों की यह वैजयन्ती वनमाला है, इस कारण से यह श्रीचरणकमल पर झुक के आ लगी है; अहा ! भक्ति की गति क्या न्यारी होती है, "उज्ज्वलरस" ("रसराज" अर्थात् "शृङ्गार" रस), भक्ति की अपार छवि के भार से नमित, क्या ही सुन्दर होता है, यह बात इससे जानने में श्राती है कि श्रीभक्ति महारानी का जो दर्शन पाता है सो अवश्य प्रभु के प्रेम के वश हो ही जाता है। के पटना खगविलास प्रेस में मिलती है।