पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४७०

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n a.. . HAMPINHEMAME भक्तिसुधास्वाद तिलक । ४५१ थायबौ सह्यो न जाय चलौं घर धाय तेरे ल्यावौ गाड़ी भारियै । खिरकी जु मन्दिर के पाछे तहाँ ठाढ़ो करो, भरौ अंकवारी मोकों बेग ही पधारिये ॥२४२॥(३८७)। ___ वार्तिक तिलक। श्रीद्वारकाजी के निकट ( सात कोस) डाकोर (हीराकोरक) नाम के एक गाँव में श्रीरामदासजी रहते थे । आपको श्रीभगवान् की भक्ति अति प्रिय थी। श्रीरणकोर भगवान के यहाँ प्रति एका- दशी की रात को जागरन कीर्तन उत्सव हुआ करता था, उसमें आप भी बराबर पहुँचा करते थे, यह अापका नियम था। आप बूढ़े हुए, तो भगवान ने कृपाकर आज्ञा दी कि "तुम इस अवस्था में अब सात कोस आने जाने का कष्ट न सहा करो।” परन्तु आपने जागरन के प्रानन्द में साथ देना नहीं छोड़ा। भगवान ने प्रेम तथा कृपापूर्वक कहा कि तुम्हारा अाना मुझसे सहा नहीं जाता, सो तुम शीघ्र मुझे अपने घर ही ले चलो। इसके योग्य एक गाड़ी ले पायो । मन्दिर के पीछे जो खिड़की है उसी के सामने गाड़ी खड़ी रखना । अपने अँकवार में लेके मुझे उस गाड़ी पर लेटा देना और बड़ी त्वरा से गाड़ी हाँक ले जाना॥" (२९६) टीका । कवित्त । (५४७) करो वाही भाँति, आयो जागरन गाडी चढ़ि, जानी सब वृद्ध भयो, थकी पाँव गति है। द्वादशी की आधी रात लेकै चल्यो मोद गात, भूषण उतारि धरे, जाकी साँची ति है ॥ मन्दिर उघारि देखें, परो है उजारि तहाँ, दौरे पाछे जानि, देखि कही कौन मति है। बापी पधराय हाँकि जाय सुखपाय रह्यो, गह्यो चल्यो जात पानि, मालो घाव अति है ।। २४३ ॥ (३८६) वात्तिक तिलक। श्रीरामदासजी ने वैसा ही किया। गाड़ी पर चढ़के जागरन कीर्तन के उत्सव में आए। लोगों ने अनुमान किया कि 'बूढ़े होने से पावों की शक्ति थक जाने के कारण अबकी गाड़ी पर आए हैं।'