पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४७२

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H yu d -manand indiruhindi ubMANORAN 4-ल-44-MAH .m भक्तिसुधास्वाद तिलक। में उनमें से एक बोल उठा कि "मैंने रामदास को देखा था कि उस बावली की ओर गया था। सबने बावली में जा देखा जल में रुधिर छाया हुआ था ! तब वे सब चिन्तित तथा चकित हुए। श्रीभगवान ने आज्ञा की कि “मेग भक्त मुझे मरी पात्रा से ले चला है, तुमने जो मेरे भक्त को मारपीट की सो मैंने अपने शरीर पर ले ली है, देखो ! मेरे ही लहू से बावली रुधिरमय हो रही है, तुमने बुरा किया, तुम सब फिर जाव, तुम्हारे साथ मैं नहीं जानेका, अमुक ठिकाने मेरी दूसरी मूर्ति है, तुम उसको ही ले जाकर पधरा लो। और मेरी इस प्रतिमा के तुल्य सोना लेके लोट जाव ॥" पुजारियों ने माँगा कि "अच्छाआप सोना तोल दीजिये” प्रभु ने आपको (रामदासजी को) आज्ञा दी कि “तोल दो।" आप बोले कि “भला मेरे पास सोना कहाँ है?" प्रभु ने उत्तर दिया कि “राम. दासजी ! अपनी स्त्री के कान की बाली को मेरी मूर्ति के तुल्य तौल के दो॥ यह कह फिर आपको भगवत् ने जिता दिया ।। (२९८) टीका । कवित्त । (५४५) लगे जब तौलिये कों, बारी पाछे डारि दई नई गति भई पल उठै नहीं बारी कौ । तब तो खिसाने भए, सबै उठि घर गए, कैसे सुख पावें फिरन्यो मतिही मुराग को ॥ घर ही विराजे श्राप, कह्यो भक्ति को प्रताप, जाप करें जो फुरै रूप लाल प्यारी कौ । बलिबंध नाम प्रभु बाँध बलि भयो तब, आयुध को छत सुनि आए चोट मारी को ॥२४५॥ (३८४) वार्तिक तिलक । जब वे श्रीभगवत् प्रतिमा के साथ सोने की उस बाली को तौलने लगे, तो यह नई गति हुई कि प्रभुप्रताप से वाली ऐसी भारी हो गई कि वालीवाला पलरा पृथिवी पर से उठा ही नहीं । भगवत् ने निज मूर्ति को इलका कर लिया, यह पल्ला ऊपर को उठ गया । तब तो पुजारी सब क्रोधित लज्जित हो हारकर घर लौट गए, यह