पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४७३

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४५४ श्रीभक्तमाल सटीक । कहते हुए कि "रामदास के घर भगवत् भला क्या सुख पावेंगे ? पर प्रभु की मति ही उलटी हो गई ॥" श्रीसरि अब आपके घर ही में श्रा विराजमान हुए । भक्ति का प्रताप कहा (दिखलाया)। श्रीरामदासजी भजन जाप ध्यान में मग्न रहने लगे। देखिये, जो भक्त भगवन्नाम जपते हैं तो युगलसर्कार के रूप अनूप उनके हृदय में फुरते हैं (प्रकाश होते हैं)। प्रभु ने जब से “बलि" को बाँधा तब से "बलिबन्ध" नाम हुआ और राजा बलि के यहाँ प्रभु विराजे, और जब श्रीरामदासजी हथियार की चोट से घायल हुए, तब प्रभु आपके यहाँ विराज ने लगे और तभी से प्रभु का "आयुधछत" ऐसा नाम भी सुना जाता है । अभी तक घाव पर पट्टी बाँधी जाती है। अब तक मन्दिर को जब जब सुधारने की आवश्यकता होती है, तब तब मूर्ति को रामदास भक्तजी के ही वंश का कोई जन उठाता है, किसी दूसरे से वह प्रतिमा उठती ही नहीं । इससे जाना जाता है कि अभी तक भगवत वहाँ विराजते हैं। (२९९) छप्पय । (५४४) बच्छ हरन पाछै बिदित सुनौ संत अचरज भयो। जसूस्वामिके वृषभ चोरि ब्रजबासी ल्याये। तैसेई दिये श्याम वरष दिन खेत जुताये ॥नामा ज्यों नँददास मुई इक बच्छि जिवाई। अंब अल्हकौं नये प्रसिद्ध जग गाथा गाई ॥बारमुखी के मुकुट कौं, श्रीरङ्गनाथ को शिर नयो । बच्छ हरन पाछै बिदित सुनौ संत अचरज भयो ॥५४॥ (१६०) वातिक तिलक। श्रीमद्भागवत में ब्रह्माजी का वच्छहरण विस्तारपूर्वक गाया