पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४७६

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भक्तिसुधास्वाद तिलक। भाव उत्पन्न हुआ, और बाके वे स्वामीजी के पाँचों में लपट गये। उनके निपट प्राधीन दीन वचन सुन, उनका अभिलाष देख, दयानिधि स्वामीजी ने उनको अपने शरण में लेके भगवत्मन्त्र का उपदेश किया। उन्होंने चोरीकर्म त्याग दिया, उनकी मति प्रति विशुद्ध हो गई, उन्होंने नवीन रीति धारण की, वे सन्तों के पन्थ पर चले, गुरुस्थान में भगवत् तथा साधुओं के लिये अन्न और दूध दही इत्यादि पहुँचाते, बड़ा नुराग किया करते, साधुसंग में उपस्थित होते, भक्ति भक्त भगवंत था गुरु के यश गाते, अनन्तसुख पाते, और परमानन्द में छके दो० "हरिगुणधाम नाम रत, गत ममता मद मोह । ताकर सुख सोई जाने, चिदानन्द सन्दोह ॥" (६३) श्रीनन्ददासजी वैष्णव-सेवी। (३०२) टीका । कवित्त । (५४१) निकट बरेली गाँव, तामैं सो "हवेली" रहँ नन्ददास विभक्त साधु-सेवा रागी है। करै दिज द्वेष तासों, मुई एक बलिया ले, डारि दई खेत माँझ गारी जक लागी है। हत्या की प्रसंग करें, सन्त जन हूँ सो लरें, हिन्दू सोन मारै, यह बड़ोई अभागी है । खेत पर जाय वाही लियो है जिवाय, देखि द्वेषी परे पाँय, भक्ति भाय मति पागी है ॥ २४८ ॥ (३८५) वात्तिक तिलक । बरेली के समीप एक ग्राम हवेली में श्रीनन्ददास नाम एक ब्राह्मण साधुसेवानैष्ठिक रहते थे। एक दुष्ट गोतिया आपसे द्वेष रखता था, उसने एक मरी हुई बछिया आपके खेत में डाल दी, झूठ मूठ आपको हत्या दोष लगाया । बहुत बड़बड़ाता रहा । सन्तों से भी वे सब विवाद बखेड़ा करते थे कि यह हत्यारा है हिन्दू नहीं है तुम लोग कैसे साधु हो जो इसके यहाँ हो, इत्यादि। श्रीनन्ददासजी खेत पर गए और भापने उस पछिया को