पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४७५

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श्रीभक्तमाल सटीक । २८.............श्रीभवतमाल सटीक ।.. HONOMINDuram- की थी, इस निमित्त आप खेती किया करते थे। एक समय आपके बैलों को व्रजवासी चोर चुरा ले गये। आपको बैलों के चोरी जाने की कुछ सुधि नहीं हुई, क्योंकि श्याम कृपालु ने आपको ठीक वैसे ही बैलों का जोड़ा अनुग्रह किया। वे भी भली भाँति खेत जोता करते थे। हाँ, इस जोड़े को स्वामीजी अधिक प्यार किया करते थे॥ इसी प्रकार से एक वर्ष के लगभग व्यतीत हुआ। एक दिन हाट में वे ही चोर आए और श्रीस्वामीजी के यहाँ दोनों बैलों को देख चकित हो आपस में बोले कि "इनको हमारे यहाँ से यहाँ लाया कौन?" वे घर पहुँचे तो वहाँ भी बैलों को बंधे देखा, यहाँ फिर आए तो यहाँ भी देखे । ऐसे ही दो चार (कई) बेर यहाँ वहाँ अाए गए, दोनों जगह वैसा ही जोड़ा देख अति श्रमित और चकित हुए, चित्त में कोई एक बात ठीक नहीं होती थी। निदान स्वामीजी से पूछा, आपने उत्तर दिया कि "बैल तो मेरे रामजी के यहाँ सदा बने हैं खेत जोतते हैं।" तब घर जा बैलों को चोर लोग आपके पास ले आए। परन्तु यहाँ आते ही इन बैलों को न पाया (ये अदृश्य हो गए) केवल वे ही बैल फिर रह गए। (३०१ ) टीका । कवित्त । ( ५४२). ___ बड़ोई प्रभाव देख्यो, तैसे प्रभु बैल दिये, भयो हिये भाय, जाय पायनि में परे हैं । निपट अधीन दीन भाषि, अभिलाष जानि, दयाके निधान स्वामी शिष्य लैके करे हैं। चोरी त्यागि दई, अति शुद्ध बुद्धि भई, नई रीति गहि लई, साधु पन्थ अनुसरे हैं। अन्न पहुँचाई, दूध दही दै लड़ावे, भावे, सन्त गुण गावै, वै अनन्त सुख भरे हैं ॥ २४७ ॥ (३८२) वात्तिक तिलक। चोरों ने श्रापका यह बड़ाभारी प्रभाव देखा कि प्रभु ने कृपा करके श्रापको वैसे ही बैल दे दिये थे, इससे उनके हृदय में बड़ा १ "लड़ाव" ==प्रेम करते थे ॥