पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/४९२

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Hrendra+ Me MINATARAIBHABHeman भक्तिसुधास्वाद तिलक। बनिये की सामग्री लाने से तो चमार के घर जन्म हुआ, और जो उसका दूध पीऊँ तो न जाने कि क्या गति हो । स्वामी श्रीरामानन्दजी महाराज को आकाशवाणी हुई कि "ब्रह्म- चारी तुम्हारे घोर शाप से अमुक चमार के घर जन्मा है उस पर तुमको अव दया उचित है।" श्रीवचनामृत को सुनकर श्री १०८ रामानन्द स्वामीजी महाराज शीघ्र ही उस चमार के घर जा,आप के पास पहुंचे। माता पिता जो दुखी हो रहे थे, श्रीस्वामीजी को देखते ही दौड़कर पाँव पड़, गिड़गिड़ाने लगे कि “महाराज ! लड़का दूध नहीं पीता श्राप कृपा कर कुछ उपाय कर दीजिये।" श्रीजी ने श्रीकृपा से श्रीराम-

मन्त्रराज उपदेश किया, निष्पाप तथा सुखी हो आप माता के स्तन

। से दुग्ध पान करने लगे, मानों पुनर्जीवित हुए, श्रीस्वामीजी को ईश्वर से अधिक मानने जानने लगे।

पूर्व जन्म का अपना चुक स्मरण कर अपने अज्ञान पर बड़ा पश्चा-

त्ताप किया। (३२०) टीका । कवित्त । (५२३) बड़ेई रैदास हरिदासनि सो प्रीति करी पिता न सुहाई दई ठौर पिछवारहीं। हुतो धन माल कन दियोहू न हाल तिया पति सुख जाल हो किये जब न्यारहीं ॥ गाँठे पगदासी कडू बात न प्रकासी । ल्या खाल करें जूती साधु संत को सँभारहीं । डारी एक छानि । कियो सेवा को सुस्थान रहें चौड़े आप जानि बाँटि पावे यहि । धारहीं ॥ २६१ ॥ (३६८) वात्तिक तिलक। श्री रैदासजी बड़े हरिभक्त हुए, और माता पिता आदि से आपको वैराग्य था, श्रीहरिभक्तों ही से पीति रखते थे। आपका यह आचरण माता पिता को तनक नहीं सुहाता था माँ बाप ने कह दिया "जा, घर । के पिछवाड़े रह, तब आपने एक छोटी सी कुटिया बना ली कि जिसमें श्रीठाकुरजी की सेवा करते थे।