पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५१३

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४९४ +++ + + ++ ++ ++ ++ M e + श्रीभक्तमाल सटीक । सन्तों ने प्रभु से विनय किया कि “राजा की मति सुधार दीजिये ॥" राजा ने रात को भयानक स्वप्न देखा, प्रेव ने उसकी खाट उलट दी। श्रीदेवीजी ने उसको प्रत्यक्ष दर्शन दिये। राजा ने मुक्ति माँगी, श्रीदेवीजी ने इस प्रार्थना से प्रसन्न हो हरिभक्ति का मार्ग बताया, और देवीजी ने राजा का आदर किया, नई रीति हुई । राजा को हरिभक्ति अति प्रिय लगी॥ (३४४) टीका । कवित्त ! (४९९) पूलयो हरि पायवे को मग जव, देवी कही, "सही रामानन्द गुरु करि, प्रभु पाइये ।" लोग जाने बौरी भयो, गयौ यह काशीपुरी, फुरी मति पति, आये जहाँ-हरिगाइये ॥ द्वार मैं, न जाने देत, आज्ञा ईश लेत, कही राजसों न हेत, सुनि सबही लुटाइयै । कह्यो “कुवाँ गिरौं” चले गिरन प्रसन्न हिए, जिये सुख पायौ, ल्याय दरस दिखाइये ॥ २८३ ॥ (३४६) वात्तिक तिलक । श्रीपीपाजी ने श्रीदेवीजी से पूछा कि "माता! श्रीसीतारामजी कैसे मिलें ?" श्रीदेवीजी ने उत्तर दिया कि "पुत्र । काशीजी में जाके श्रीरामानन्दजी का शिष्य हो।" श्रीपीपाजी बड़ी ही आतुरता से श्रीकाशीपुरी, भगवान रामानन्दजी के स्थान में पहुँचे, आश्रम देख और हरिकीर्तन सुन विशेष श्रानन्द पाया। ___ ड्यौदी पर के मृत्य ने पापाजी को रोका, उनके आगमन का सब समाचार तथा हेतु श्रीस्वामीजी से विस्तारपूर्वक निवदेन किया, और श्रीश्राज्ञा श्रा सुनाई कि "गृहासक्ति और विरक्ति में बड़ा अंतर है। राजसी लोगों से हमारा प्रेम नहीं।"पापाजी ने सबका सब तृण की नाई उड़ा दिया सब धन ठिकाने लगाया। इसके उपरांत इनको यह श्राज्ञा दी गई कि "कुएं में कूद पड़,"अाज्ञा सुनि, पीपाजी कुएं की आरे ज्योंही लपके, कि इतने में भगवान रामानन्दजी के सेवक लोग बड़ी फुर्ती और अति लाधव से इनको पकड़ के श्रीस्वामीजी महाराज के सन्मुख ले गये । श्रीदर्शन से पीपाजी कृतकृत्य हुए।