पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५५९

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५४० Nand- m ...maa N ame श्रीभक्तमाल सटीक । सब ब्राह्मण लोग श्राकर,हा हा खाकर कहने लगे कि “आप दोनों, यह हठ छोड़ दीजिये, ऐसा मत कीजिये, हम आपके पुत्र कन्या दोनों का विवाह कर लेंगे।" आपने कहा कि “हम तो श्रीगुरु आज्ञा से ऐसाही करेंगे, हमको अब उस प्रकार विवाह करना भला ही नहीं लगता।" पुनः अति दीन होकर सब ब्राह्मणों ने वारंवार प्रार्थना की, तब, फिर एक भाई ने श्रीकबीरजी के पास श्राके सब वृत्तान्त कह, प्रका कि "जैसी आज्ञा हो?" श्रीकवीरजीने कहा कि "जो अब ब्राह्मण लोग नम्र हुए हैं तो उनको यह दंड करो कि भगवद्भक्ति करें, तब ब्याह करौ।" श्रीगुरु बाबा सिर पर रख अपने गृह श्रा, सबको भक्ति दृढ़ कराके तब अपनी कन्याएँ दीं। और उनके पंक्ति में ले लेने से कुछ प्रसन्न न हुए । क्योंकि श्राप तो श्रीरामभक्त के साथ ही अपनी जाति पाँति मान प्रेमरस में सदा मग्न रहते थे॥ श्रीवत्वाजी जीवाजी का श्रीगुरुवचन में ऐसा विश्वास देख विमुख लोग सम्मुख बड़ाई करते थे कि “हम सब तो आपके गुरु वचन पालन के प्रण ही में रीझ गये ॥" (८६) श्रीमाधवदासजी जगन्नाथी। (३८४) छप्पय । (४५९) बिनै ब्यास मनो प्रगट है, जग को हित "माधौं" कियौ ॥ पहिले बेद विभाग कथित, पुरान अष्टादस। भारत आदि भागौत मथित उद्घाखौ हरि जस ॥ अव सोधे सब ग्रन्थ अर्थ भाषा बिस्तायौलीला जै जै जैति गाय भवपार उताखौ ॥जगन्नाथ इष्ट बैराग्य सीव करुणा रस भीज्यौ हियौ । बिनै ब्यास मनो प्रगट है, जग को हित "माधौ” कियौ ॥७॥ (१४४) बात्तिक तिलक । मानो श्रीविनय युक्त व्यासजी प्रगट होकर श्रीमाधवदासजी ने