पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५६०

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HAPAN +uar +MAN MMAHIMIRMIRAindramonil- Mmmmm+ A भक्तिसुधास्वाद तिलक । जगत् के जीवों का हितकार किया । जैसे प्रथम द्वापर में प्रगट हो- कर व्यासजी ने वेदों का विभाग किया, तथा अठारह पुराण और महा- भारत बनाकर सबों को मथ कर, हरियशमय "श्रीभागवत" निकाला, वैसेही अव माधवदासरूप होकर, सब ग्रन्थों को ढूंढ विचार, सारांश ले. भाषा ग्रंथ विस्तार किये । उनमें "जयजयकार” शब्दयुक्त भगवत्लीला गान की है, जिसको गाके, जीव भवसागर के पार उत्तर जाते हैं। श्रीजगन्नाथजी आपके इष्टदेव थे, और आप वैराग्य की तो सीवाँ थे तथा करुणारस में आपका हृदय सदा भीगा रहता था। (३८५) टीका । कवित्त । (४५८) माधोदास द्विज, निज तिया तन त्याग कियो, लियो इन जानि , जग ऐसोई ब्योहार है । सुत की बढ़नि जोग लिये तित चाहत हो, भई यह और लै दिखाई करतार है | ताते तजि दियौ गेह, वेई सब पाल देह, करै अभिमान सोई जानिये गवार है । आये नीलगिरि- धाम, रहे गिरिसिंधु तीर, अति मनिधार, भूख प्यास न विचार है ॥३१५॥ (३३४) वात्तिक तिलक। श्रीमाधवदासजी ब्राह्मण थे। आपकी बी ने प्राण त्याग दिया। देखकर आपको ज्ञान होगया कि “संसार में शरीरों का व्यवहार ऐसाही मिथ्या है । मैं चाहता था कि यह पुत्र बड़ा हो परिवार बढ़े, परन्तु कर्ता प्रभु ने मुझे और ही वार्ता दिखाई" इत्यादिक विचार कर प्रवल वैराग्यपूर्वक गृह को त्याग दिया। मन में यह विचारते, कि “ये मेरे माता पुत्रादिक जितने देहधारी हैं उन सबका पालन परमेश्वर ही ने किया है और प्रभु ही करेंगे । मैं जो इनके पालन का अभिमान करूँ, तो बड़ागवारपना है' इत्यादिक विचार करते नीला- चलधाम में श्रीजगन्नाथजी का दर्शन कर नीलगिरि के समुद्र तीर एकांत में पड़ रहे महामतिधीर भूखप्यास को त्याग केवल प्रभु के स्मरण ही में लगे रहे।