पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/५९७

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श्रीभक्तमाल सटीका PatnaparnatantanAmAnantrava .intamaniauirmanant - I-INirmaana (४२७) टीका । कवित्त । (४१६) पाए, सूर सागर सो कही “बड़े नागर हो, कोऊ पद गावो, मेरी छाया न मिलाइये"। गाये पाँच सात, सुनि जान मुसुकात, कही भलें ज् प्रभात आनि कारकै सुनाइये । पखो सोच भारी,गिरिधारी उर धारी बात, सुन्दर बनाय, सेजधलो यो लखाइये । आय कै सुनायो, सुख पायो, पच्छ- पातले बतायो, हूँ मनायो रङ्ग छायो, अभू गाइयै ॥३४६ ॥(२८३) वात्तिक तिलक। श्री सरजी से मिले, श्रीसूरजी ने आपसे कहा कि “भाई ! तुम बड़े चतुर हो, एक पद बनाके सुनाओ पर उसमें मेरे किसी पद की छायान पाई जावे, आपने पाँचसात पद सुनाए, पर सूरजी ने मुसक्याके बताया कि इनमें मेरे अमुक अमुक पद की छाया है। निदान यह ठहरी कि आज रहे, कल नया पद सुनाया जावै । आपको बड़े सोच में देख श्रीगिरिखर- धारीजी ने मन में विचार एक सुन्दर पदवनाके आपके आसन पर रखदिया जिसको देख आप बड़े प्रसन्न हुए। आपने जाकर श्रीसूरजी को सुनाया। श्रीसूरजी ने अति सुख पाकर कहा कि आपके ठाकुर ने अपने बाबा का (आपका) पक्षपात कर आपके निमित्त स्वयं बना दिया है। दोनों मूर्ति भगवत्कृपा के रङ्ग में पग गए। अब तक वह पद गाए जाते हैं। ( ४२८ ) टीका । कवित्त । ( ४१५ ) कुवाँ में खिसिल, देह छुटि गई, नई भई, भई यो असंका कछु और उर आई है । रसिकन मन दुख जानि, सो सुजान नाथ दिया दरसाय, तन ग्वाल सुखदाई है ।। गोवर्द्धन तीर कही "मागे बलबीर गये श्री- गुसाई धीरसोंपनाम,"यो जनाई है। धनहू बतायो, खोदि पायो बिसवास आयो, हियें सुख छायो, सेक पंक लै बहाई है ॥ ३४७ ॥ (२८२) .

  • कहते है कि उस पद का प्रथम तुक यह है:-

। "आवत बने कान्ह गोप बालक सँग बच्छ की खुर रेणु छुरित अलकावली ॥"