पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६

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  • श्रीहंसकलायै नमः *

भूमिका

श्रीसीताराम-कृपा से इस दीन को बचपन ही से श्रीभक्त- मालजी के पढ़ने में, और श्रीहरिभक्तों की कथाओं के श्रवण से करने में, असाधारण आनन्दानुभूति होती आई है। इसस कारण श्रीप्रेरित होकर स्वभावतः इस दीन ने श्रीभक्तमालजी: को अत्यन्त मनोयोग के साथ बड़ी श्रद्धा से, प्रथम तो अपने पूज्य पिता श्रीमहात्मा तपस्वीरामजी सीतारामीय से 2 जो अपने समय में उस प्रान्त में "श्रीभक्तमालीजी" नाम से प्रसिद्ध थेअध्ययन किया था,और तत्पश्चात् यहाँश्रीजानकी-घाट के महात्मा स्वामी पंडितवर श्री १०८ रामवल्लभाशरण है महाराजजी से और पंडित श्रीगंगादासजी से भी पढ़ा था।

श्रीभक्तमालजी के इस "भक्तिसुधास्वाद” नाम तिलक- निर्माण में तीनों महोदयों की शिक्षा से जो अनमोल सहायता है ली गई है सो अकथनीय है, और यह दीन एतदर्थ सदा से उपर्युक्त तीनों महोदयों का एकान्त ऋणी बना रहेगा।

इसका प्रथम संस्करण, श्रीकाशीजी में, बाबू बलदेव- नारायण सिंहजी वकील ने छः जिल्दों में छपवाकर प्रकाशित किया, इसलिये वे सजन भी इस दीन के अमित अमित धन्यवाद के पात्र हैं।

तिलककार विनीत दीन

असल्यास

}श्रीसीतारामशरण भगवानप्रसाद रूपकला

( S. S R. S_B. P. R. K.)