पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/७

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  • श्री
  • समर्पण *

सुमुख, सुलोचन, सरल, सत, चिदानन्द, छविधाम। प्राण-प्राण, जिय जीव के, सुखके सुख, सियराम १ पवनतनय, विज्ञानघर, कपि, बल पवन समान। रामदूत, करुणायतन, बुद्धि विवेक निधान २ सन्तशिरोमणि सन्तप्रिय, प्रेमी, सहज उदार।। जानकिघाटश्री प्रेमनिधि", रामप्रेम आगार ३ "रामवल्लभाशरण"शुचि, पण्डित सन्तप्रवीन । तेजपुंज, सद्गुण-भवन, शोभा नित्य नवीन ४ रामचरितमानस प्रभृति, भक्तमाल निगमाद । वाल्मीकि भागौत की, कथा प्रेम रस स्वाद ५। शान्ति, विरति, रति, ज्ञान, हरि-भक्ति, सुतत्व विभाग। सन्त समाज बखानहीं, वचन अमिय अनुराग श्रीहरि गुरु करकंज यहि, अति मन वच काय। रुपिया सोई तुच्छ अति, कृपया लें अपनाय ७

• तुम्हारी
 
रुपिया (रूपकला)
 

श्रीअयोध्याजी.