पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६०२

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५८३ M ++ ++R .Net MH- भक्तिसुधास्वाद तिलक । रानाजी को कष्ट क्यों हूँ।" किसी ने कहा कि “वह नाचनेगाने में ही वैरागियों के साथ अपने घर अपना दिन बिताता है।" पुनः राना ने भापको कहला भेजा कि “आज रात को हरिकीर्तन जागरण हमारे ही यहाँ हो। (४३३) टीका । कवित्त । (४१०) गये संग साधुनि लै, बिन रंग रंगे सब, राना उठि भादर दे, नीके पधराये हैं। किये जा विछौना तीनि उत्तनि के ऊपर लै, नाचि गाय आये प्रेम गिरे नीचे आये हैं ॥ राजामुख भयो सेत, दुष्टनि को गारी देत, सन्त भरि अंक लेत, घर मधि ल्याये हैं । भूप बहु भेंट करी, देह वाही भाँति परी, पाछे सुधि भई, दिन तीसरे जगाये हैं ॥३४६ ॥ (२८०) वात्तिक तिलक । __ आप साधुओं को साथ लेकर पहुंचे, सबके सब विनय प्रेम में रंगे थे, और श्रीविठ्ठलजी के प्रेम का कहना ही क्या । राना ने उठकर समाज का आदर सम्मान किया । कई दुर्जनों के कहने से जागरण के लिये बिछावन तिखने की छत पर कराया गया था। समाज को वहीं पधराया । श्रीविठ्ठलजी भगवद्यश नाम के कीर्तन में प्रेम से ऐसे बेसुध हुए कि तिखने पर से नीचे धम से गिर पड़े राना का जी उड़ गया, बहुत ही डरा, उन दुष्टों पर क्रोध करके दुर्वचन सुनाए । साधुओं ने आपको गोद में उठा लिया, घर लाए । श्रीभक्तरक्षक भगवान की कृपा से आपको चोट का तनक नाम तक नहीं पहुँचा । शरीर वैसा ही पड़ा रहा, तीसरे दिन सुध बुध आयी, आप जागे । राना ने अपराध क्षमा कराया, बहुत कुछ भेंट पूजा भेजी॥ (४३४) टीका । कवित्त । (४०९) उठे जव, माय ने जनाय सब बात कही, सही नहीं जात निसि निकसे विचारिक । आये यो “छटीकरा" मैं, गरुड़ गोविन्द सेवा, करत मगन हिये रहत निहारि कै ॥ राजा के जे लोग सु तो हँदि करि रहे वैठि, तिया मात्र आई करै रुदन पुकारि के । किये लै