पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६०६

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५८७ भक्तिसुधास्वादतिलक । इन रसिकों के अपूर्व चरित्रों को अपने हृदय में आप धारण करें । intHmarathi (१०५) श्रीहरिराम हठीले। (४३९) छप्पय । (४०४) हरिराम हठीले भजनबल,राना को उत्तर दियौ। उग्र, तेज, उदार, सुघर सुथराई सीवा। प्रेमपुंज, रसरासि सदा गद्गद सुर (स्वर) ग्रीवा ॥ भक्तन को अपराध करै ताको फल गायौ। हिरण्यकशिपु प्रह्लाद परम दृष्टांत दिखायौ ॥ सस्फुट बकता जगत मैं, राज सभा निधरक हियौ। हरिराम हठीले भजनबल, राना को उत्तर दियौ ॥८५॥ (१२९) पातिक तिलक। श्रीहरिराम हठीलेजी उग्र, तेजस्वी, उदार, सुघर, बड़े सुन्दर, प्रेमयुञ्ज, रसराशि थे, आपके गले का स्वर सदा गद्गद रहा करता था । जो कोई किसी हरिभक्त का अपराध कर उसका क्या फल होता है, सो श्रीमहादजी के शत्रु हिरण्यकशिपु का उदाहरण देकर राजसभा में राना से, निधड़क और स्पष्ट रूप से कह ही सुनाया, भगवद्भजन के बल से जी में राना का कुछ डर न पाया। (४४०) टीका । कवित्त । (४०३) राना सों सनेह, सदा चौपर कौं खेल्यौ करे, ऐसो सो संन्यासी भूमि संत की छिनाई है। जाय कै पुकालौ साधु, झिरकि विडास्यौ पखौ विमुख के बस, बात सांची लै झुठाई हैं। प्राये हरिरामजू पै, सबही जताई, रीति प्रीति करि बोले चल्यो आगे आवै भाई है। गये, बैठे, 'आयो जन मन मैं न ल्यायौ नृप, तब समुझायौ, झाखौ, फेरि भू दिवाई है ॥ ३५५ ॥ (२७४) वात्तिक तिलक ! । राना के दार में एक संन्यासी था जो राना के साथ चौपर