पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६१

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४४ श्रीभक्तमाल सटीक 1 •rintmentertainmenterta inment इसका प्रमाण ( १०७ वें छप्पय) में श्रीमूलकारने "लाखा" भक्त को , वानर अर्थात् वानरवंशी लिखा और ( ४२२ वें कवित्त में) भक्तमाल के टीकाकार ने--"लाला नाम भक्त ताको वानरों बखान कियो कहै जग डोम जासो मेरो शिरमार है" ऐसा लिखके आगे इनके गृह में सन्तों का जाना और रोटी प्रसाद का पाना भी लिखा है सो देख लीजे ॥"लाखा भक्त के यहां सन्तों का प्रसाद रोटी पाना अन्यथा असंभव था।अस्तु, यहां तो दोनों प्रकार से उत्तमता है श्रीनामा स्वामी तो श्री सीतारामजी के अनन्य विशुद्ध जगदपूज्य दास हैं न ब्राह्मण हैं न डोम इन अच्युतगोत्र की देह तो जात्यभिमान से रहित है । इत्यलम् ॥ __ और श्रीनाभाजी के अवतार की कथा इस प्रकार भी सन्तों से सुनी है कि जब ब्रह्माजी ने वत्स बालकों को हरण किया तव श्रीकृष्ण कृपालु जी ने कहा "ब्रह्माजी आपने विमोह दृष्टि से हमारे प्रिय वत्स बालकों का हरण किया तिस हेतु से कलिकाल में लोचनहीन जन्म लाग" तव श्रीब्रह्माजी ने स्तुति की और श्रीभगवान ने प्रसन्न होके वर दिया कि "पांच वर्ष तक अंधे रहोगे तदुपरि बाहर भीतर दोनों प्रकार के दिव्य नेत्र खुलेंगे और परम यश को प्राप्त होगे।” सोई श्रीब्रह्माजी के अंश से श्रीनाभाजी का अवतार जानिये ॥ प्रशंसनीय "हनुमान वंश" में, हरि इच्छा से आपने अन्धे ही जन्म लिया, और "नवीन वात," सो यही कि नेत्रों के चिह्न तक न थे, तिनको भी महात्माओं की कृपा से दिव्य लोचन मिले। आप पाँचवर्ष के हुए तब देश में अति दुकाल पड़ा । पिता का भी शरीर छूट गया । माता आपको लेके और देश को चली; परन्तु भूखों मरने लगी, लेके न चल सकी इसी विपत्ति के वश वनही में छोड़कर चली गई। वह दीनता, और भगवत् की यह दीनदयालुता विचारने ही योग्य है कि स्वामी श्री- कोल्हदेवजी तथा स्वामी श्रीअनदेवजी श्रीहरिकृपा से उसी ओर जा निकले,अनाथ बालक को देख आपने पूछा कि "बालक! तू कौन है ? और अकेला क्यों है ? कोई और भी तेरा संगी सहायक है ? तेरे माता पिता कौन हैं ?"