पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । AIMAHAMmanti. (१६) श्रीनाभाजी की आदि अवस्था वर्णन । कवित्त । (२७) हनूमान वंश ही में जनम प्रशंस जाको भयो दृगहीन सो नवीन बात धारिये । उमरि वरष पांच, मानि के भकाल आंच, माता वन छोड़ि गई विपति विचारिये ॥ कील्ह ौ अगर ताहि डगर दरश दियो लियो यों मनाथ जानि, पूछी, सो उचारिय। बड़े सिद्ध जल लै कमण्डलु सों सींचे नैन, चैन भयो खुले चख, जोरी को निहारिये ॥ १२॥ (६१७) तिलक । स्वामी श्रीनाभाजी महाराज के जन्म, और प्रथम अवस्था की दशा इस प्रकार है कि परम प्रशंसनीय श्रीहनुमान वंश में अवतार लिया ॥ सो हनुमान वंश का निर्णय मुन्शी श्रीतुलसीराम जी और "रुमूजे मिह व वफा" के कर्ता श्रीतपस्वीरामजी ने, इस प्रकार किया है कि दक्षिण में तैलङ्ग देश गोदावरी के समीप श्रीरामभद्राचल के पास "श्रीरामदास" जी समर्थ नाम के एक महाराष्ट्र ब्राह्मण श्रीहनुमान जी के अंशावतार हुए, (उनके छोटी सी पंछ भी थी) वे बड़े प्रसिद्ध श्रीरामो- पासक परम भक्त सानुराग सिद्ध थे बहुतों को श्रीसीताराम भक्त भव विरक्त श्रीचरणानुरक्त करके श्रीसीताराम धाम को पास हुए । इस प्रकार श्रीहनुमान अवतार होने से वह हनुमान् वंश करके विख्यात है, अबतक उस वंश के लोग गानविद्या के अधिकारी होते हैं, राजा लोगों के यहां नौकरी गानेपर करते हैं ऐसा उन्होंने लिखा है ॥ __ और इसी भक्तमाल को, दोहा चौपाई में रचनेवाले राजा श्रीरघुराज सिंहजी ने ऐसा लिखा है कि “सो शिशु लागूली दिजकेरों" अर्थात् उन्होंने हनुमान वंश का "लागूली" ब्राह्मण अर्थ किया है । . और, कोई २ तो स्वामी श्रीनाभाजी का जन्म डोमवंश में भी कहते हैं, परन्तु पश्चिम देश में “डोम" किस को कहते हैं यह न जाननेवाले लोग इस देश में डोम भंगी का नामान्तर समझ के "भंगी" भी कह बैठते हैं सो भंगी कहना महा अनुचित अविचार वो पाप है क्योंकि पश्चिम माड़वार आदिक देशों में डोम, कलावत, ढाढ़ी, भाट, कथक, इन गानविद्या के उपजीवियों की तुल्य जाति (ज्ञाति) और प्रतिष्ठा है।