पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६३

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४६ श्रीभक्तमाल सटीक । Amm m ..HM4MAHIL Anne4--4+Ameriment (१७) टीका । कवित्त (२६) पाय परि आँसू आये, कृपा करि संग लाये, कोल्ह आज्ञा पाइ, मंत्र अगर सुनायो है । “गलते" प्रगट साधु सेवा सो विराजमान जानि अनुमान, ताही टहल लगायो है ॥ चरण प्रचालि संत सीथ सों अनंत प्रीति, जानी रस रीति, ताते हृदय रंग छायो है । भई बढ़वारि ताको पावै कौन पारावार, जैसो भक्तिरूप सो अनूप गिरा गायो है ॥१३॥ (६१६) तिलक। बड़ी श्रद्धा से उनने अपना सीस दोनों महात्माओं के पदकंज पर रख दिया । कृपापूर्वक वे "गलता" स्थान में (गालव मुनि के आश्रम में कि जो जयपुर के पास है,) लाए गए। _स्वामी श्रीकोल्हदेवजी की आज्ञा से, स्वामी श्रीअनदेवजी ने नारायणदास नाम रखकर इनको श्रीराममन्त्र उपदेश किया। उक्त गादी की साधुसेवा तो प्रसिद्ध है, ही श्रीनाभाजी(नारायणदासजी) को यह टहल सौंपा गया कि “सन्तों के चरण धोया करें, तथा उच्छिष्ट पत्तल उठाया करें" "वही सन्तप्रसादी पाया करें और सन्तचरणामृत पिया करें।" ___ महात्मानों की आज्ञानुसार कुछ काल पर्यन्त ऐसा ही करने से श्रीरामकृपा से इनको सन्तों के चरणामृत तथा सीथप्रसाद में अत्यन्त प्रीति हो गई, और उसका स्वादविशेष भी इनने जाना । एवं इनका अन्तःकरण भागवतों तथा भगवत् के विलक्षण प्रेमरंग से रंग गया, और ऐसे अनुपम विद्युत् के चमत्कृत प्रकाश से सुशोभित हुआ कि जिसकी अलोकिक किंचित् झलक की अपूर्व अवस्था से (कवित्त १० पृ.४१)ज्ञान वैरागरूपी नेत्रों को चकाचौंध सी हो जाती है । जैसी अपार बढ़वारी (बड़ाई) इनकी हुई उसका वारपार कौन पा सकता है ? देखिये, श्रीभक्तिजी का जैसा विलक्षण स्वरूप है उसको अपनी अनूप वाणी से श्रीभक्तमाल में आपने (श्रीनामास्वामीजी ने) कैसा गाया है ॥ श्रीगोस्वामी नाभानी का यश थोड़ा सा इस दसवें ग्यारहवें बारहवें तेरहवें कवित्त के तिलक में कहे ॥