पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

THORAGH ALO4.4 4-9-07 भक्तिसुधास्वाद तिलक । ४७ श्रीभक्तमालकार स्वामी श्रीनाभाजी प्रथमतः "दोहाओं” में ही मंगलाचरण करके, अब "षट्पदी (कप्पय) छन्द के प्रारम्भ में पहले, चौबीसों अवतारों का जयकारात्मक मङ्गलाचरण करते हैं। (१८) (मूल) छप्पय । (८२५) जय जय मीन, बराह, कमठ, नरहार, बलि-बावन । परशुराम, रघुवीर, कृष्ण कीरति जगपावन ॥ बुद्ध, कलकी ,व्यास, एy , हरि", हंस,मन्वन्तर यह, ऋषमें, हयग्रीव, ध्रुववरदैन, धन्वन्तर, ॥ बद्रीपति', दत्त, कपिलदेवे, सनकादिक करुणा करौ । चौबीस, रूप लीला रुचिर श्रीअग्रदास उर पद धरौ ॥५॥ (२०६) तिलक। जय जय जय, हे श्रीमच्छरूप भगवान ! आपकी जय, हे श्रीशूकररूप भगवान ! आप की जय, हे श्रीकच्छपरूप भगवान ! आपकी जय, हे श्रीप्रह्लादपति नरसिंहजी ! आपकी जय, हे बलियुत श्रीवामनजी! आपकी जय, हे श्रीपरशु-राम ! श्रापकी जय, हे प्रभो श्रीरामचन्द्र रघुवंश- मणि! आपकीजय, हे यदुपति श्रीकृष्णचन्द्र ! आपकी जय, हे बुद्धावतार! आपकी जय, हे श्रीकल्कि भगवान ! भापकी जय, हे श्रीवेदव्यासजी। आपकी जय, हे श्रीपृथुजी ! आपकी जय, हे गजेन्द्र रक्षक श्रीहरि। आपकी जय, हे श्रीहंसरूप भगवान् । आपकी जय, हे चतुर्दश मनु । अवतार ! आपकी जय, हे श्रीस्वयंभू मनु के रक्षक श्रीयज्ञ भगवान ! आपकी जय, हे श्रीऋषभ भगवान् ! आपकी जय, श्रीहयग्रीवरूप भगवान् ! आपकी जय, हे श्रीध्रुवजी के वरदाताजी श्रापकी जय, हे श्रीधन्वन्तरजी! आपकी जय, हे बद्रीपति श्रीनरनारायणजी ! आपकी जय, हे श्रीदत्तात्रेयजी ! आपकी जय, हे श्रीकपिलदेवजी ! आपकी जय, हे श्रीसनक श्रीसनन्दन श्रीसनातन श्रीसनत्कुमारजी! आपकी जय जय, हे भगवन् । भापके चौबीस रूपों की रुचिर लीलाओं की कीर्ति जगत् को पावन करनहारी है, आप मेरे ऊपर कृपा कीजै, अर्थात्