पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६४६

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भक्तिसुधास्वाद विनम्। कहा कि "हमारे श्रीगुरुजी आये हैं, उनके समीप थे।" (४८५) टीका । कवित्त । (३५८) सुनी पाये गुरुवर, कही "ल्यावो मेरे घर, देखौं करामात," बात यह ले सुनाई है। कहो आनि "अभू जावो, “चलों, उनमान देख," चले सुख मानि, आयौ हाथी धूम छाई है ॥ छोड़िक कहार भाजि गये, न निहारि सके, आप रससार बानी बोले जैसी गाई है। “बोलो हरेकृष्ण कृष्ण, बाडीगज तम तन,” सनि गयौ हिये भाव, देह सो नवाई वात्तिक तिलक । दुष्ट राजा ने मंत्रियों के मुख से यह सुनकरकि "हमारे गुरुस्वामीजी धाये हैं" कहा कि "उनको हमारे यहाँ लाभो, हम उनकी कुछ करामात देखें, तब गाँव देंगे।" उसने जब यह बात सुनाई. तब आपके शिष्यवर्ग ने फिर आपसे प्रार्थना की कि "स्वामीजी श्राप अब भी स्थान को चले जाइये" आपने उत्तर दिया “चलो, उसको देखू क्या कहता करता है।" ऐसा कह, पालकी पर विराजमान हो, सुखपूर्वक पधारे ॥ उधर से दुष्ट ने बड़ा पागल और मनुष्यों को मार डालनेवाला, एक हाथी सामने छुड़वा दिया। हल्ला धूम मचा, कहार सब पालकी छोड़कर भागे, हाथी की ओर देख भी न सके। भाप हाथी के प्रति प्रभावयुक्त परम रसीली वाणी बोले कि "हे चेतन ! तुम हाथी शरीर का तमोगुण तजो, श्रीहरेकृष्ण श्रीहरेकृष्ण बोलो।"आपका प्रभाव-युक्त उपदेश सुनते ही हाथी का हृदय भाव से भर गया, अपना मस्तक और सूड आपके चरणों में नवाकर उसने प्रणाम किया। (४८६) टीका । कवित्त । (३५७) वहै हग नीर, देखि कै गयो अधीर, श्राप कृपाकरि धीर कियो. दियो भक्तिभाव है। कान में सुनायो नाम, नाम = "गुपालदास," माल पहिराई गरे, प्रगट्यो प्रभाव है ।। दुष्ट सिरमौर भूप लखि, उहिं ठोर भायौ, पाय लपटायो, भयौ हिये अति चाव है। निपट अधीन,