पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६४८

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६२९ AM + 4 maramanane + +-+ m Kanti Pun as- भक्तिसुधास्वाद तिलक। हाथी आया तब श्रीरसिकमुरारिजी ने कहा कि बनजारों की वस्तु बलात्कार ले आना निन्द्य काम है, छोड़ दो गुरुग्राज्ञा मान गोपालदास- जी ने वह रीति छोड़ दी, परन्तु सब पनिकों ने आप सीधे का नियम कर दिया। सन्तों से हाथी की प्रीति बहुत बढ़ी। अब तो इन (गज- गोपालदास) के साथ में सन्तों की “जमात” फिरने लगी, “गजगोपाल दास महन्त” का नाम सर्वत्र विदित हो गया ।। (४८८) टीका । कवित्त । (३५५) सन्त सत पाँच सात संग, जित जात तित लोग उठि धा.ल्या सीधे बहु भीर है। चहुँदिसि परी हुई, 'सूवा सुनि चाह भई, हाथ पै न श्रावत सोपान कोऊ धीर है । साधु एक गयो गहि लयौ भेष दास तन, मन में प्रसाद नेम, पी नहीं नीर है। बीते दिन तीन चारि, जल लै पिवावै धारि, गंगाजू निहारि मधि तज्यौ यो सरीर है ।।३६३ ।। (२३६) वात्तिक तिलक । महन्त गजगोपालदासजी के संग में पाँच सात सौ मूर्ति सन्तों का समूह रहने लगा, जिस ओर जाते थे वहाँ सब लोग उठ दौड़ते, सन्तों के लिये सीधा सामग्री ला देते थे, लोगों की भीर लगजाती थी, इस गजेन्द्र की भक्ति की चारों दिशाओं में धूम मच गई। । इस बात को यमनपान्त-राजा (सूबा) ने सुना उसको हाथी के देखने की इच्छा हुई, बहुत लोगों को भेजा कि “पकड़ लायो” परन्तु हाथी किसी के हाथ न आया। उसने कहा कि “जो कोई धीर हाथी को पकड़ लादै उसको हम बहुत द्रव्य देंगे। यह सुन एक दुष्ट साधु-वेषधारी गया, पकड़ लाया श्रीगोपालदासजी सन्त का वेष देख चले आये। परन्तु गजगोपालदासजी का नियम चरणामृत प्रसाद लेने का था, इससे आपने जल नहीं पिया, तीन चार दिन विना जल बीत गये, तव विचार कर लोग उनको श्रीगंगाजी की धारा में जल पिलाने ले गये । गज भक्त गंगा में प्रवेश कर, शरीर छोड़, भगवद्धाम को चले गये, भक्तों , ने जयजयकार किया