पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/६४९

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श्रीभक्तमाल सटीक। (४८९ ) छप्पय । ( ३५४ ) भवप्रवाह निस्तार हित अवलंबन ये जन भये॥ सोझा, सीवां, अधार धीर, हरिनाम, त्रिलोचनें। आशाधर, द्यौराजनीर, सधना, दुखमोचन ॥ काशी- श्वर, अवधूत, कृष्णकिंकर, कटहरियाँ । सो , उदा. राम, नामइगर, ब्रतधरिया ॥ पदमै, पदारथे, राम दास, बिमलानन्द, अमृतश्रये । भवप्रवाह निस्तार हित, अवलंबन ये जन भये ॥६६॥ (११८) वात्तिक तिलक । संसार प्रवाह में बहे जाते हुए जीवों के निस्तार के लिये ये भगवद्भक्त अवलंवन रूप हुए । सोझाजी, सीवाँजी, धीर मतिवाले अधारजी, हरि नामजी, त्रिलोचनजी, आशाधरजी, घोराजनीरजी, संसारी जीवों का दुःख छुटानेवाले सधनजी, गुसाईकाशीश्वरजी, अवधूत कृष्ण किंकरजी, कटहरियाजी, सोभूजी, उदारामजी, श्रीरामनामस्मरण व्रत धरनेवाले डूगरजी, पदमजी, पदास्थजी, रामदासजी और विमलानन्दजी॥ इन (अठारह) भगवजनों ने अपने बचन और कर्मों से जीवों पर प्रेमामृत की वर्षा की । १ श्रीसोमाजी १० श्रीकृष्णकिंकरजी २ श्रीसीवांजी ११ श्रीकटहरियाजी ३ श्रीअधारजी १२ श्रीसोभूजी ४ श्रीहरिनामजी १३ श्रीउदारामजी ५ श्रीत्रिलोचनजी १४ श्रीगरजी ६ श्रीमाशाधरजी १५ श्रीपदमजी ७ श्रीचौराजनीरजी १६ श्रीपदारथजी १७ श्रीरामदासजी ८ श्रीसधनजी १८ श्रीविमलानन्दजी ६ श्रीकाशीश्वरजी